Book Title: Dhyan Shatak
Author(s): 
Publisher: Divyadarshan Karyalay

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Page 296
________________ ( २७१ ) पदार्थ का चिन्तन नहीं आ सकता। क्योंकि राग के कारण आत्मा का राग के विषयों की ओर आकर्षण है । अतः शुक्ल ध्यान के सूक्ष्म विषय में मन तन्मय या एकाग्र नहीं बन सकता । (२) दूसरा शुक्ल ध्यान : एकत्व वितर्क अविचार अब शुक्ल ध्यान का दूसरा प्रकार कहते हैं: P विवेचन : शुक्ल ध्यान का दूसरा प्रकार एकत्व वितर्क अविचार' नामक है । यह प्रकार पहले प्रकार से अत्यन्त निष्प्रकंप अर्थात् स्थिर होता है । जैसे बिना हवा वाले घर के हिस्से में रहे हुए दीपक की ज्योति जरा भी हिलती नहीं है, किन्तु एक ही स्थिर अवस्था में रहती है, इसी तरह दूसरे शुक्ल ध्यान में चित्त अत्यन्त स्थिर हो गया होता है । पहले प्रकार में तो उत्पत्ति स्थिति नाश आदि वस्तु के पर्यायों में से किसी एक पर्याय पर से दूसरे पर्याय पर चित्त जाता था, जब कि इसमें इनमें से किसी एक ही पर्याय पर चित्त स्थिर हो जाता है । 'अविचार' : इतना ही नहीं, पहले प्रकार में चित्त अर्थ पर से शब्द पर या योग पर विचरण वाला याने संक्रमण वाला था, पर यहां अर्थ का व्यंजन या योग में संक्रमण नहीं होता । जिस किसी एक पदार्थ या शब्द या योग पर मन में लीनता हुई वही हो गई । ऐसी चित्त की अत्यन्त स्थिरता होती है । एकत्व वितर्क : इसमें 'एकत्व' याने अभेद से चिन्तन होता है । ( 'मैं इस पदार्थ का चिन्तन करता हूँ' ऐसा ध्याता ध्येय और ध्यान का भेदानुभव नहीं, इन भेदों को अलग करने का अनुभव नहीं, पर अभेदानुभव याने तीनों की एकरूपता हो जाती है । ध्यान में विषय भी अलग प्रतीत नहीं होता, ध्यान से अपना ध्याता

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