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घड़े में या तप्त लोहे के बर्तन में रहा पानी धीरे धीरे कम होता है, उसी तरह योगी के मन रूपी जल को जानो । ( वह भी अप्रमादरूपी अग्नि से तप्त जीव रूपी बर्तन में रहा होने से घटता जाता है ।)
तरह से, किस दृष्टांत से ? ऐसे ही केवली भगवान अब मन को हटा देते हैं, दूर कर देते हैं यह किस तरह ?"
इसका उत्तर देते हैं -
विवेचन :
मन को संकुचित करके अगु पर लाकर फिर सर्वथा हटा देने के तीन दृष्टां बताये हैं: - ( १ ) शरीर में व्याप्त जहर ( २ ) ईंधन पर का अग्नि तथा (३) कच्चे घड़े या गरम तप्त लोहे के बर्तन में रहा हुआ पानी 1
१. त्रिष संकोच का दृष्टांत : - किसी मर्पदंश आदि का जहर पूरे शरीर में व्याप्त हो गया हो, परन्तु वहां कोई मन्त्रवेत्ता मन्त्र प्रयोग करना हैं, तो मन्त्र पढ़ते पढ़ते क्रमशः विष को देह के अंगों में से संकुचित करते करते बिलकुल दंश के हिस्से पर ले आता है । फिर श्रेष्ठतर मन्त्र प्रयोग से उस दंश भाग में से भी उसे दूर कर देता है, तब शरीर बिलकुल निर्विष व स्वस्थ बन जाता है । ( किसी अन्य जगह गाथा में 'मंत जोगेहि' पाठ है । वहां श्रेष्ठतर मन्त्र और योग दो विषनाशक पदार्थ पमझना । उसमें भी योग याने उस प्रकार को विशिष्ट औषधि का प्रयोग । ) यह दृष्टांत हुआ ।
इसका उपनय इस प्रकार से है कि यहां मन संसार के अनेक मृत्युओं का कारण होने से जहर समान है । वह मन पूरे त्रिभुवन रूपी शरीर में व्याप्त हो जाता है । अर्थात् त्रिभुवन को अपना ( चिंतन का) विषय करता हैं । परन्तु क्रमशः जहर उतारने वाले मन्त्रवेत्ता