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( १७८ ) होना वही है, तब भी एक घण्टे के बाद उसे जो पुरानी कहेंगे। वह काल द्रव्य के आधार पर उसे एक घण्टा पुरानी कहेंगे।
. इस तरह लक्षणों के विचार से पता चलता है कि छहों द्रव्यों में से एक एक द्रव्य का लक्षणकार्य स्वय ही कर सकता है, दूसरा द्रव्य नहीं। यह सूचित करता है कि छहों द्रव्य भिन्न-भिन्न हैं और एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं। इन लक्षणों पर बहुत कुछ चिंतन किया जा सकता है।
(ii) आकृति (संस्थान) : संस्थान याने आकृति मुख्यतः अजीव पुद्गल की रचनाओं का आकार ही है, इस बात का यहां -इसमें चिंतन किया जाता है। उदाहरण गोले का आंकार, ढाल की तरह गोल. त्रिकोण (त्रिभुज) चतुर्भुज या लकड़ी जसा लम्बा आदि आकार मुख्य हैं। बाकी अन्य गौण आकारों का पार नहीं है। जंगल में कैसी कैसी विचित्रता होती है । पुद्गल के आकार ही जीव के आकार गिने जाते हैं। जोव और शरीर का आकार समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोध सस्थान, सादि-वामन, कुब्ज, और हुडक कुल ६ संस्थान होते हैं। क्रमशः (१) पद्मासन से बैठे हुए व्यक्ति का दाहिने घुटने से बायें कंधे तक का अन्तर, एवं . बायें से दाहिने कन्धे तक का अन्तर, दो घुटनों का अन्तर, और
ललाट से नीचे दोनों पैरों के मध्य भाग तक का अन्तर, ये चारों समान होते हैं। (२) न्यग्रोध में वट वृक्ष का तरह नाभि से ऊपर का शरीर लक्षण तथा प्रमाण वाला होता है, (३) 'सादि' में इससे उलटा याने (नोचे का लक्षण प्रमाण यूक्त, (४) 'वामन' में सिर गला, हाथ, पर ही लक्षण प्रमाण वाले, (५) कुब्ज में ये खराब, परंतु छाती पेट आदि अच्छे और (६) हुंडक मे सर्व अवयव प्रमाण व बक्षण रहित होते हैं । शरीर तथा तत्सम्बन्धी जीव के इन संस्थानों का चिंतन करना चाहिये। धर्मास्तिकाय का आकार लोकाकाश के पैसा है। लोकाकाश का आकार नीचे उलटी छाब जैसा, मध्य में