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कहा जाय तो पुद्गल में भी रूप रसादि गुण गाढ रूप से जुड़ते हैं तो इससे क्या रूप रसादि को उपयोग कहोगे ?
उत्तर- 'उपयोग' का यहां यह अर्थ नहीं है। पर 'उपयोग" याने जिसके द्वारा दूसरे में नकटता से तन्मयता से जुड़ना हो वह । मात्मा को ज्ञानदर्शन से उसके विषय में ऐसा जुड़ना होता है । अर्थात् विषय को तन्मयता से देखता है जानता है। सारांश, ज्ञानदर्शन 'उपयोग' इस लिए है कि इससे जीव दूसरे विषय में उपयुक्त याने जाग्रत सावधान या जानकार बन जाता है। किसो जड़ को दूसरे का कोई विचार ही नहीं है, दूसरे की जाग्रति या जानकारी नहीं है, कुछ पता ही नहीं, ध्यान ही नहीं है। इससे उसमें उपयोग नहीं है। तो छोटी चींटी जैसे जीव को चलते हुए यह पता चल जाता है कि यह पानी आया, तो वह निवृत्त हो जाती है, वह उस में आगे नहीं बढेगी। सिद्ध के जीवों को पूरे जगत का पता चलता है; मात्र उन्हें रागादि न होने से वे उसमें प्रवृत्ति या निवृत्ति नहीं करते ! किसी जड़ को दूसरे का कुछ पता लहीं चलता। दर्पण को भी कुछ समझ में नहीं आता; उसमें पड़ने वाला प्रतिबिम्ब तो मात्र छायाणु का संक्रमण है। अतः जड़ के गुण को उपयोग नहीं कहा जा सकता। ___ यह उपयोग दो प्रकार से है। १. साकार, २. निराकार। साकार याने ज्ञानोपयोग, निराकार याने दर्शनोपयोग। यहां 'साकार' = ज्ञान यह विशेष उपयोग है और 'निराकार' दर्शन यह सामान्य उपयोग है। वस्तु के दो स्वरूप है (१) सामान्य और (२) विशेष । ऐसी ही दूसरी वस्तुओं के साथ का समान भाव सामान्य । उदा. दूसरे पार्थिव पदार्थों के समान घड़ा भी पार्थिव है; अत: घड़े की पार्थिवता सामान्य कही जाती है तो दूसरों से भिन्नता विशेष है। उदा० इसी घड़े का घड़ापन अन्य