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इसी तरह मोक्ष में जाने का भी आदि रहित याने अनादिकाल से चालू है । क्योंकि उससे पहले और उससे भी पहले धर्म स्थापित किया हुआ था तभी तो जोव उसका आलंबन लेकर मोक्ष में गये । ऐसा तीर्थ स्थापित करने वाले तीर्थ कर भी तभी हुए कि जब वे उससे पहले के किमी तीर्थं में आराधना कर चुके होंगे । ये पूर्व तीर्थ के स्थापक भी उससे पहले के किसी तीर्थ के आलंबन से पहले आराधना करके ही हुए होंगे ।.... इस तरह तीर्थ तथा मोक्ष में जाने का दोनों ही अनादि से चलता रहा है । तो अनादि काल का तो कोई नाप ही नहीं। इससे इतने अमर्यादित समय से जीव मोक्ष में जाते हों, तब भी संसार खाली नही हुग्रा यह हकीकत वर्तमान स्थिति बता रही है । तो अमर्यादित समय में जो नहीं हुआ वह ग्रब मर्यादित समय में हो जावेगा ? आदि रहित 'अमर्यादित' भूतकाल में कितने सारे जीव मोक्ष में गये होंगे ? तब भी जैन शास्त्र कहते हैं कि एक निगोद के जीवों की संख्या का अनंत की संख्या में ही जीव मोक्ष में गये हैं । तो जब ऐसे नापरहित अमर्यादित काल के भी इतने ही मुक्त, तो अब इसके बाद के अमुक काल में कितने जीव मुक्ति में जावेंगे ? बीते के हुए काल मुक्त जीवों का अनंतवां हिस्सा हो न ? इससे संसार कैसा खालो होगा ? संसार अनादि अनंत है ?' ऐसा सोचे ।
संसार अशुभ है: - अशुभ याने संपार में कौन सी वस्तु सुन्दर है ? प्रशस्त है ?
शोभन असुन्दर' यह सोचे । प्रश्न - तो क्या संसार में देव गुरु धर्म तीर्थ तथा शास्त्र आदि सुन्दर वस्तुएं नहीं है ?
उत्तर - जरूर सुन्दर हैं, पर वे संसार की वस्तुएँ नहीं हैं । वे संसार को उखाड़ने वाली मोक्ष मार्ग की वस्तुएं हैं। संसार की वस्तु तो संसार में भटकाने वाले आहार, विषय, परिग्रह परिवार