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उसके पहले संसार नहीं था याने आत्मा विलकुल शुद्ध था । तो फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे आत्मा का यकायक संसार खड़ा होने का क्या कारण हुआ ? कारण बिना कार्य नहीं होता यह सनातन सिद्धान्त है।
प्रश्न-कोई कार्य यों ही हो गया, ऐसा नहीं होता?
उत्तर-यदि प्रारम्भ होने का कार्य यों ही हो गया मान लें, तो प्रश्न उठेगा कि (१) वह तभी क्यों हुअा ? इससे पहले या इससे बाद में क्यों नहीं ? फिर (२) यदि शुद्ध का भी संसार प्रारम्भ हो जाय तो भविष्य में भी मोक्ष पाने के बाद भी पुनः संसार के प्रारम्भ होने का भय क्यों नहीं रहेगा ? कार्य कारण से ही हुआ मानने वाला तो कह सकेगा कि जीव अत्यन्त शुद्ध हो जाने के बाद कारण नहीं रहने से अब कभी भी उसे संसार नहीं होगा। तो पहले तो जब भी पूछा कि 'संसार कैसे ?' तो यही कहा जायगा कि उसके पहले के कारणों से। इस तरह पूर्व पूर्व (पहले) कारण होगा ही; अतः संसार का प्रवाह अनादिकाल से चालू है, यह सिद्ध होता है। ____ तो किसी जीव के संसार का तो अन्त होता है, परन्तु समग्र रुप से देखते हुए जोव अनंतानत काल तक अशुद्ध रहने वाले हैं; इससे अनंत है।
प्रश्न- क्या संसार कभी भी खाली नहीं होगा ?
उत्तर- नहीं । जीव इतने अनंतानंत हैं कि कभी भी वे सब मोक्ष में जा नहीं पायेंगे यह समझ लेने के लिए इतना ही विचार काफी होगा कि आज तक में कितना समय बीत गया ? उसकी मर्यादा या उसकी गिनती नहीं की जा सकती कि इतना गया। क्यों कि काल की आदि नहीं हैं कि अमुक समय से ही काल का प्रारंभ हुआ। इससे जैसे काल प्रादि से रहित है, अनादि है,