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एएच्चिय पुयाणं पुचधरा सुप्पसत्थ संघयणधरा । दोण्ड संजोगाजोगा सुक्काण पराण केवलियो ।।६४।। ___ अर्थ:-यही अप्रमादी मुनि शुक्ल ध्यान के पहले दो प्रकार के अधिकारी हैं; मात्र वे पूर्वधर तथा श्रेष्ठ वज्र ऋषभ नाराच संघयणधारी होने चाहिये । शुक्ल ध्यान के 'पराण' याने पिछले दो प्रकार के ध्याता तो सयोगी अयोगी केवलज्ञानी ही होते हैं।
प्रथम दो प्रकार के शुक्ल ध्यान के अधिकारी
अब शुक्ल ध्यान के प्रथम दो प्रकार के ध्याता भी समान रूप से ही अमादि आदि हैं अतः आगे शुक्लध्यान के निरूपण में उनका पुनः वर्णन न करना पड़े, इसलिए संक्षेप के लिए यहां हो प्रसंगवश उन को बताने के लिए कहते हैं:विवेचन :
पहले दो प्रकार 'पृथकत्व वितर्क सविचार' और 'एकत्व वितर्क अविचार' शुक्ल ध्यान के अधिकारी भी अप्रमादी तथा उपशामक आदि होते हैं। इस धर्मध्यान में आगे बढ़ने पर शुक्लध्यान हो सकता है । मात्र वे पूर्वशास्त्र के ज्ञाता होने चाहिये।
माषतुष मुनि को शुक्ल ध्यान कैसे ? प्रश्न-माषतष मूनि मरुदेवा माता आदि जैसों को पूर्वशास्त्र का ज्ञान कहां था ? तो क्या उन्हें शुक्ल ध्यान नहीं था ? नहीं था तो केवलज्ञान कैसे हुआ?
उत्तर- उन्हें शुक्ल ध्यान हुआ था। क्यं कि उसके बिना असंख्य जन्म के एकत्रित किये हुए ज्ञानावरणीयादि घाती कर्म