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श्री अभयदेव सूरिजी महाराज ने तथा 'शास्त्र वार्ता समुच्चय' महाशास्त्र के विवेचन में महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने धर्मध्यान के १० प्रकार बताये हैं।
धर्म ध्यान के १० प्रकार धर्म ध्यान के १० प्रकारों में यहां कहे हुए आज्ञाविचयादि ४ प्रकारों के उपरांत जीव, अजीव, भव, विराग, उपाय तथा हेतु विचय नामक ६ गिने हैं। अलबत्ता, पूर्वोक्त संस्थान विचय में इन छः का विचार आ जाता है, परन्तु यों तो अपाय तथा विपाक का भी विचार उसमें समा जाता है, तब भी पहले कहे अनुसार विशिष्ट उद्देश्य से अपाय विपाक की तरह ही इन जीव अजीवादि का विचार है । दसों प्रकार का विचार यहां संक्षेप में उसके भिन्न भिन्न उद्देश्य दिखाने के साथ बताया जाता है।
(१) आज्ञा विचय में यह सोचना चाहिये कि 'अहो ! जगत में हेतु उदाहरण, तर्क आदि होने पर भी हमारे जैसे जीवों के पास बुद्धि का वैसा अतिशय नहीं है, तो आत्म-प्रत्यक्ष की तो बात ही क्या ? इससे आत्मा को लगने वाले कर्म, परलोक, मोक्ष, धर्म अधर्म आदि अतीन्द्रिय पदार्थ स्वतः देखने या जानना समझना बहुत कठिन हैं। तब भी ये पदार्थ परम प्राप्त पुरुषों के वचन से जाने जा सकते है। ऐसे परम आप्त पुरुष एक मात्र वीतराग सर्वज्ञ श्री तीर्थङ्कर भगवान होते हैं । अहो ! उनके वचनों ने इन पदार्थों पर कितना सुन्दर प्रकाश डाला है। उन्हें झूठ बोलने का अब कोई कारण नहीं है । इससे उनके वचन उनकी आज्ञा टंकसाली सत्य है। उनका कथन यथास्थित ही है। अहो ! कैसी कैसी अनन्त कल्याणरूप तथा त्रिलोकप्रकाशक, सूक्ष्म सद्भूत पदार्थ बोधक, सन्मार्गदेशक, विद्वत् जन मान्य और सुरासुरपूजित उनकी आज्ञा !