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हुई चौथी चौकड़ी के कषाय भी अधिकाधिक पतले होते जाते हैं ! यही चारित्र का वेग है।
वैराग्य मार्गः- ऐसा चारित्र वैराग्य के मार्ग पर ही चलता है । मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण वीतराग दशा चाहिये, वह विराग-भाव की साधना से खड़ो होगी । अतः विराग को मार्ग कहां । इस मार्ग से वीतराग दशा और फिर मोक्ष-नगर पहुँचा जा सकता है । चारित्र राग के नहीं, परन्तु इस विराग के मार्ग पर चलता हैं । इसी तरह अन्य तो बहुतों का त्याग है, किन्तु
आहार, वस्त्र, पात्र, मूकाम आदि का जो उपयोग है वह भी विरक्त दशा से । संसारी को तो घर, दुकान, परिवार व पैसा आदि सब राग के मार्ग पर ही ले जाते हैं; उसे चलना पड़ता है।
चारित्र में कैसे व्यवसाय से स्थिरता ? 'विस्त्रोतसिका' की तरंगों से चारित्र क्षोभरहित है। 'विस्रोतसिका' याने जैसे समुद्र में जहाज को उलटे रास्ते ले जाने वाली तरंगे पाती हैं, वैसे ही मन को उन्मार्ग की ओर खींचने वाला दुध्य न या अपध्यान । यही मोक्ष-प्राप्ति के बीच में अशुभकर्मो रूपी विध्नों के समूह को खड़ा करते हैं । पर चारित्र में शुभ व्यवसाय भरपूर होने से दुर्ध्यान तरंगे रुक जाती हैं । याने उससे चारित्र विचलित नहीं होता, क्षोभ प्राप्त नहीं करता। An idle mind is devil's work shop. खाली दिमाग शैतान का घर है। खाली मन पिशाची विचार करता है। इसलिए चारित्र जीवन में ८ प्रहर में से २ प्रहर निद्रा, तथा १ प्रहर गोचरी-भ्रमणग्रहण, भोजन तथा स्थंडिल भूमिगमन आदि के लिए; कुल ३ प्रहर छोड़कर बाकी पांचों प्रहर शास्त्र स्वाध्याय के रखे गये हैं। इसी के बीच में प्रतिक्रमण आवश्यक क्रिया तथा योग क्रिया कर ली