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पार्थिव कुण्ड आदि पदार्थों से भिन्न है । अतः घड़े का घड़ापन रसकी विशिष्टता कही जायगी। फिर दूसरे घड़े के समान इसमें बड़ापन सामान्य है, पर अन्य घडों की अपेक्षा उसकी अमुक बनाबट, अमुक मातिकी अमुक स्थान आदि धर्म भिन्न है; अतः वे धर्म इस बड़े का विशिष्ट स्वरूप कहे जावेंगे। बस वस्तु को विशेष रूप में देखना वह विशेषोपयोग साकार उपयोग याने ज्ञान कहलाता है और सामान्य रूप से देखना वह सामान्य उपयोग, निराकार उपयोग याने दर्शन कहलाता है।
साकार उपयोग : यह आठ प्रकार का है। मतिज्ञानादि ५ तथा मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान व विभंग ज्ञान ये ३ मिलकर कुल ८ हए। ( इसमें अज्ञान याने ज्ञान का अभाव नहीं पर मिथ्याज्ञान याने मिथ्या दृष्टि का ज्ञान ) ।
निराकार उपयोग : ग्रह चार प्रकार का है । बक्षुदर्शन, प्रचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन व केवल दर्शन । श्री तत्त्वार्थ शास्त्र (अ० २ सू. ९) में कहा है 'सद्विविधोऽष्ट चतुर्भेदः' अर्थात् उपयोग दो प्रकार का साकार व निराकार और वह क्रमशः ८ और ४ भेद से है। यह उपयोग ही जीव का लक्षण है। उसका बितन करे।
२. याल स्थिति : यह जीव की अनादि अनन्त है, शाश्वत नित्य है। कभी भी जीव बिलकुल ही नया उत्पन्न हुआ ही नहीं; वैसे ही अत्यन्त नष्ट भी नहीं होता। अलबत्ता, उसमें पर्यायों के परिवर्तन होते रहते हैं। एक जन्म के बाद मृत्यु, पुनः जन्म, फिर मृत्यु; अभी मनुष्य फिर देव, अभी संसारी फिर मुक्त । ऐसे भिन्न भिन्न वदलते हुए पर्यायों की अपेक्षा से जीव अनित्य है । पर इन सब पर्यायों में जीव के रूप में तो वह कायम ही रहता है। उसके प्रवाह से नित्य है। इस पर से वर्तमान जीवन ही देख कर