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मचित्य महेतुक पदार्थ है। अग्नि की ज्वाला का स्वभाव ऊपर जाने का क्यों ? और वायु का स्वभाव तिरछा जाने का क्यों है ? उसका जवाब यही है कि वह वस्तु स्वभाव है अस्तु ।
रत्नप्रभादि पृथ्वी धनीदधि के आधार पर हैं। वह फिर तनोवधि के ऊपर है। तो वह तनुमात पर अवस्थित है। पर्वत तथा समुद्र तो पृथ्वी पर अवस्थित हैं। भारी वायु पर हलके रजकरण मादि ऊपर रह जाते हैं, जिसके हट जाने पर वे रजकण नीचे गिर जाते हैं।
आकाशादि के आधार पर इस तरह रहना शाश्वत काल से है। इसी तरह तनवात पर तनवात पर धनवात, धनवात पर धनोदधि तथा उसके ऊपर पृथ्वी....यह व्यवस्था भी शाश्वत है। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। 'संस्थान विचय' में इस सब का चिंतन हो सकता है। अब जीव पदार्थ पर का चिंतन बताते हैं। (गाथा ५५)
४. बीव पदार्थ पर चिंतन जीव वस्तु पर वितन के यहां ६ प्रकार बताये हैं : वे इस . वरह हैं:-लक्षण, कालस्थिति, शरीर भिन्नता, अरूपिता, कर्तत्व तथा भोक्तृत्व । इन प्रत्येक पर निम्न प्रकार से चिंतन किया जा सकता है:--
१. लक्षण : जीव का लक्षण उपयोग है। यह ज्ञानदर्शन दो प्रकार से है : ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग ।
प्रश्र- ज्ञानदर्शन को उपयोग क्यों कहते हैं ? '३५=सायीप्येव योग = मिलना याने जो गाढरूप से उड़े वह उपयोग' यदि इस अर्थ में ज्ञान दर्शन जीव के साथ गाढरूप से जुड़ने के कारण उसे उपयोग