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' ( ८ ) ईषत् याने न कुछ (जरा) बताना हो उदा० वीर प्रभु के १२ ।। वर्ष छद्मस्थ काल में कुछ निद्राकाल में २ घड़ी; याने कहो कि प्रमाद ईषत् कुछ नहीं, साढ़े बारह वर्ष सतत अप्रमाद ।' (1) संभ्रम याने अपूर्व हर्ष में पुनरुक्ति; उदा० मॉ पडोसिन से कहता है : मेरा पुत्र पहले नम्बर पास हुआ । एक भी लड़के को आगे नहीं आने दिया । सबसे ज्यादा मार्क ले आया । (१०) विस्मय से उदा० 'प्रभु ने आज की आंगी कैसी अद्भुत ! कैमी अपूर्वं ! पहले ऐसी आंगी कभी नहीं देखी ।' यह बोलने में पुनरुक्ति दोष नहीं है । (११) वस्तु की गिनती में उदा० २४-२४ के ढेर बनाने हों तो १, २, ३, ४.. आदि अंक बार बार बोले जाते हैं । (१२) गाथा याद करनी हो, रटना हो तो उसे ही बार बार बोला जाता है । इन सब में पुनरुक्ति दोष नहीं माना जाता। इस तरह प्रस्तुत में 'जिनाख्यात' पद आदर का कारण होने से उसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है ।
क्षेत्रलोक पर चिंतन :
अब क्षेत्रलोक बताते हैं । अधोलोक, मध्यलोक व ऊर्ध्वलोक; इस तरह क्षेत्रलोक है | इस क्षेत्रलोक में सोचने का क्या क्या है वह कहते हैं: - ( गाथा ५४ )
क्षेत्रलोक के चिंतन में रत्नप्रमादि पृथ्वी, धनोदधि आदि वलय, द्वीप, सागर, नरकावास, विमान, भवन, व्यंतरनगर आदि आकृति का विचार करें ।
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पृथ्वियों में यहां से नीचे नीचे धर्मा, वंशा, शेला, अंजना, रिष्टा, मवा, माघवता, ये सात नरकवंश की रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा व तमस्तमः प्रभा नामक पृथ्वी, रोटी की तरह गोल सात पाताल भूमि हैं। पहली पृथ्वी की मोटाई १,८०,००० योजन है, उसके नोचे नीचे की उससे