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________________ ( १९१ ) ' ( ८ ) ईषत् याने न कुछ (जरा) बताना हो उदा० वीर प्रभु के १२ ।। वर्ष छद्मस्थ काल में कुछ निद्राकाल में २ घड़ी; याने कहो कि प्रमाद ईषत् कुछ नहीं, साढ़े बारह वर्ष सतत अप्रमाद ।' (1) संभ्रम याने अपूर्व हर्ष में पुनरुक्ति; उदा० मॉ पडोसिन से कहता है : मेरा पुत्र पहले नम्बर पास हुआ । एक भी लड़के को आगे नहीं आने दिया । सबसे ज्यादा मार्क ले आया । (१०) विस्मय से उदा० 'प्रभु ने आज की आंगी कैसी अद्भुत ! कैमी अपूर्वं ! पहले ऐसी आंगी कभी नहीं देखी ।' यह बोलने में पुनरुक्ति दोष नहीं है । (११) वस्तु की गिनती में उदा० २४-२४ के ढेर बनाने हों तो १, २, ३, ४.. आदि अंक बार बार बोले जाते हैं । (१२) गाथा याद करनी हो, रटना हो तो उसे ही बार बार बोला जाता है । इन सब में पुनरुक्ति दोष नहीं माना जाता। इस तरह प्रस्तुत में 'जिनाख्यात' पद आदर का कारण होने से उसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है । क्षेत्रलोक पर चिंतन : अब क्षेत्रलोक बताते हैं । अधोलोक, मध्यलोक व ऊर्ध्वलोक; इस तरह क्षेत्रलोक है | इस क्षेत्रलोक में सोचने का क्या क्या है वह कहते हैं: - ( गाथा ५४ ) क्षेत्रलोक के चिंतन में रत्नप्रमादि पृथ्वी, धनोदधि आदि वलय, द्वीप, सागर, नरकावास, विमान, भवन, व्यंतरनगर आदि आकृति का विचार करें । : पृथ्वियों में यहां से नीचे नीचे धर्मा, वंशा, शेला, अंजना, रिष्टा, मवा, माघवता, ये सात नरकवंश की रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा व तमस्तमः प्रभा नामक पृथ्वी, रोटी की तरह गोल सात पाताल भूमि हैं। पहली पृथ्वी की मोटाई १,८०,००० योजन है, उसके नोचे नीचे की उससे
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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