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नाश की मिलती है । श्रीतत्त्वार्थ महाशास्त्र (अ० ५ सू० २९) कहता है कि 'उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त सत्' याने सत् मात्र उत्पत्ति नाश
और स्थिरता वाला होता है। वे छहों द्रव्य सत् हैं । अतः ये छहों इन तीनों पर्यायों से युक्त हैं । प्रश्न यह उठता है कि
एक ही पदार्थ में उत्पत्ति स्थिति नाश तीनों कैसे ? . प्रश्न- एक में तीनों एक साथ कैसे रहें ? क्योंकि उत्पत्ति युक्त याने उत्पन्न, नाश से युक्त याने नष्ट, और स्थिति युक्त याने स्थिर । तो जो उत्पन्न हो वही नष्ट किस तरह और वही पहले से स्थिर भी किस तरह हो सकता है ?
उत्तर- किसी अपेक्षाविशेष से एक ही वस्तु उत्पन्न होती है और अन्य विशेष अपेक्षा से वही वस्तु नष्ट भी होती है और अपेक्षा विशेष से स्थिर भी हो सकती है। उदा. राजा के दो लड़कों के लिए खेलने का एक सोने का छोटा कलश था। उसमें एक बड़का कहीं बाहर गया तब दूसरे लड़के ने कहा 'मुझे खेलने के लिए मुकुट चाहिये।' तो राजा ने किसी व्यक्ति के साथ उसी कलश को भेजकर सोनी के यहां उसे गलाकर मुकुट करवा के मंगवाया। इसमें स्वर्ण नामक वस्तु स्थिर है, पर वही कलश के रूप में नष्ट हो गया है और वही मुकुट के रूप में उत्पन्न हो मया है। एक ही पदार्थ में तीनों अपेक्षा से तीनों पर्याय हैं । इसीलिए तो जब बाहर मया हुआ लड़का वापस आकर यह देखता है तो वह कलश का प्रेमी होने से नाराज होता है और उसी समय दूसरा लड़का मनपसन्द मुकुट बना हुआ होने से खुश होता है। पर पिता राजा स्वर्ण स्थिर रहा हुआ होने से मध्यस्थ है। एक ही समय पर राजा व उसके दो पुत्र तीनों की वृत्तियें भिन्न भिन्न होने के पीछे कोई कारण अवश्य है और वे कारण भिन्न भिन्न होने से ही भिन्न भिन्न वृत्तियें होती हैं। दिखने में कारणस्वरूप वस्तु चाहे एक ही दिखाई दे,