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( १५१ ) (१) द्रव्यों की प्रदेश-संख्या का परिमाण या नाप उदा० द्विप्रदेशिक स्कंध, त्रिप्रदेशिक स्कंध, अनन्त ऽदेशिक स्कंध आदि । (२) द्रव्य के विभाग से गिना जाने वाला परिमाण या नाप वह ५ प्रकार से है-मान, उन्मान, अवमान, गणिम तथा प्रतिमान । 'मान' याने अनाज या द्रवपदार्थ के भरे हुए नाप, प्रस्थक, द्रोण कुम्भ लिटर आदि 'उन्मान' याने तोल ने के नाप जैसे सेर, मन, किलो ग्राम आदि 'अवमान' याने लम्बाई का नाप जैसेहाथ, गज, वार मीटर आदि । 'गणिम' याने संख्या जैसे १, १०, १०० आदि तथा 'प्रतिमान' याने सूक्ष्म तोल माप यव, रति, वाल, मिलिग्राम ।
(२) क्षेत्र प्रमाण भी वैसे ही प्रदेश-निष्पन्न तथा विभागनिप्पन्न दो प्रकार से है। (१) प्रदेश-निष्पन्न प्रमाण आकाश के जितने प्रदेश में अवगाहना करे याने स्थित रहे वह नाप । एक प्रदेश में रहे तो एकप्रदेशी, दो प्रदेश में रहे तो द्विप्रदेशी आदि....। (२) विभाग-निष्पन्न प्रमाण के रूप में आत्मांगुल, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल । जिस जिस काल के व्यक्ति के अपने नाप से अपनी १०८ अंगुली के नाप वाले ऊंचे उत्तम पुरुष की अंगुली 'आत्मांगुली' कहलाती है। ऐसे ५०० धनुष्य की काया वाले व्यक्ति की अंगुल 'प्रमाणांगुल' कहलायेगी। वीर प्रभु के (७ हाथ की काया) आत्मांगुल से आधी 'उत्सेधांगुल' । इससे ४०० गुना ज्यादा मोटा नाप 'प्रमाणांगुल' कहा जावेगा । द्वीप समुद्र पर्वत आदि के नाप प्रमाणांगुल से गिने जाते हैं। १ रस, १ गंध, १ वर्ण तथा २ स्पर्श वाला अणु सूक्ष्म ( निर्विभाज्य ) परमाणु है। अनन्त सूक्ष्म परमाणु का १ व्यवहारिक परमाणु होता है । अनन्त व्याव० परमाणु का १ उत्रलक्ष्ण श्लक्षिणका। फिर उसे क्रमशः ८-८ गुना करते जायं तो श्लिक्ष्णका, उर्ध्वरेणु, प्रसरेणु, रथरेणु, देवकुरु या उत्तर कुरु के