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चारित्र गुण पमाण के भेद : सामायिक ( इत्वर व यावत्कथिक), छेदोपस्थानीय ( सातिचार, निरतिचार ), परिहार विशुद्धि (निविश्यमान याने तपसेवी और निविश्यकायिक याने वैयावच्ची) सूक्ष्म संपराय (संक्लिश्यमान, विशुद्धयमान) और यथाख्यात (प्रतिपाती या छद्मस्थ वीतराग का व क्षायिक । )
अजीवगुण पमाण : स्पर्श, रस, गंध, वणं, संस्थान ।
नय पमाण के ३ दृष्टांत-प्रस्थक, वसति, प्रदेश (अनाज भरने का नाप, मुकाम या स्थान व सूक्ष्मांश ) सम्बन्धो नंगम व्यवहार नय, संग्रह नय, ऋजु सूत्रनय व शब्दनय की दृष्टि भिन्न भिन्न है । वह नीचे अनुसार है:प्रस्थक दृष्टांत
वसति दृष्टांत उदा० क्या करते हो? | उदा० कहां रहते हो? जंगल की ओर जाने सेलेर क | लोक में, मध्यलोक में,....अमुक प्रस्थक नाम लेने तक कहे | गांव में, गली में, कमरे के 'प्रस्थक करता हैं।' | कोने में रहा हैं। धान्य भरे प्रस्थक (नाप) को प्रस्थक कहते हैं।
शय्या आदि में रहा हूं। ऋजु वर्तमान प्रस्थक भी प्रस्थक,
| अवगाहना वाले आकाशसूत्र उतना अनाज भी प्रस्थक | प्रदेश में रहता हूं।
प्रस्थक का ज्ञाता, उपयुक्त शब्दनय
| स्वस्वरूप में रहता हूं। ऐसा कर्ता भी प्रस्थक
नय
संग्रह
'प्रदेश' दृष्टात में नय छटना : उदा० प्रदेश कितने ?
नैगमनय-धर्मास्तिकाय प्रदेश ( धर्म-प्रदेश ), अधर्म