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अर्थः -- जैसे पेड़ के कोटर में दावानल जल उठने से पेड़ को जला देता है, वैसे ही हृदय में द्वेष उठते ही वह प्राणी को जलाता है।
द्वेषरूपी अग्नि से स्पर्श होने पर पहले तो इस जीवन में ही दुःखी होता है और फिर परलोक में वह पापी जीवन नरक की अग्नि में जलता है। ____ क्राधादि कषायों में भी ऐसा होता है । इसके नुकसान के बारे में कहा है:
काषायों के अनर्थ कोहोय माणो य अणिग्गहिया, माया य लोहो य पवढमाणा । चत्तारि गए कसिणा कसाया सिञ्चन्ति मूलं पुणब्भवस्स ।।
कोहो पीइं पणासेइ माणो विणायणासणो । माया मित्ताणि णासेइ लोहो सबविणासणो ।
अर्थ:-क्रोध व अभिमान को यदि अंकुश में नहीं लिया या नहीं दबाया, तथा माया व लोभ यदि बढते गये, तो ये चारों कषाय अखंड रह कर पुनर्जन्म संसार के बीजस्वरूप कारणों को सींचते हैं । (संसार के कारण हैं मिथ्यात्व, अर्थ, काम, आहारादि संज्ञाएँ, हिंसादि दुष्कृत्य; ये सब क्रोधादि कषायों से पुष्ट होते हैं। इससे संसार पुष्ट होता है।
क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का धात करता है, माया मित्रों को भगा देती है तो लोभ सर्व विनाशक है।
मिथ्यात्व अज्ञान के अनर्थ: इसी तरह आश्रवों के याने मिथ्यात्वादि कर्मबन्ध के हेतुओं के अनर्थ भी कैसे भयंकर हैं ?