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एक या दूसरे लक्षण चलते हों तो उस पर से हम नाप सकते हैं कि रात दिन का कितना ज्यादा हिस्सा आर्त्तध्यान में
जीव को बीतता है ।
श्रार्त्तध्यान के लक्षण
ये लक्षण इस प्रकार है:
किसी इष्ट वस्तु के चली जाने से, बिगड़ने से या नष्ट हो जाने के कारण अथवा किसी अनिष्ट के आने से उसके न जाने या न सुधरने के कारण या किसी वेदना के कारण जीव
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(१) आक्रन्द करता है, जोर से चिल्लाकर रोता है, या (२) बिना चिल्लाये भी आंसू भरी आंखों से दीन हीन जैसा बन जाता है, अथवा
(३) वाणी से दिल का गुस्सा या रोष क्रोध प्रकट करे, कुछ बकवास करे, अरुचि सूचक शब्द बोले, या उससे आगे बढ कर (४) सिर या छाती पीटे या बाल नोंच डाले ।
ये आन्तरिक रूप से मन में खटकते हुए - रहे हुए आर्त्त ध्यान के कारण ही होते हैं । ये आर्त्त ध्यान के बाह्य लिंग या चिह्न हैं । अनिष्ट होने से आर्च ध्यान
(१) ऐसा बहुत होता है । पुत्र मर गया तो इष्ट का वियोग हुआ। वह वापस तो नहीं आने वाला, तब भी उस पर चिल्लाकर रोते हैं । कई दिन, अरे कई महीने बीते, तब भी कोई याद करवाये या स्वयं याद आवे तो रोना आ जाता है । यह सूचित करता है कि अन्तर में आर्त्त ध्यान है । इसी तरह कुछ भी मन के विपरीत बन गया; उदा० खरीदते में ठगे गये, चीज हलकी मिली, तो उसके बारे हृदय की व्यथा १०-२० व्यक्तियों के आगे शब्द से बाहर व्यक्त
में