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तह तिब्धकोहलोहा उलस्स भृशोवधायणमणज्जं । परदव्यहरणचित्तं परलोयावायनिरवेवक्व ॥२१॥
अर्थः-जैसा दृढ चिन्तन दूसरे प्रकार में, वैसा तीसरे प्रकार में होता है और जीव हिंसा करने तक का पर द्रव्य चुराने का अनार्य दृढ चिंतन रौद्रध्यान है। वह तीव्र क्रोध तथा लोभ से व्याकुल और परलोक के अनर्थ की परवाह बिना के जीव को होता हैं ।
की बात कहेगा। उसके मन में चलते हुए निष्ठुरता भरे दृढ़ विचार रौद्रध्यान के कहे जा सकते हैं । यह दूसरा प्रकार हुआ।
३. तीसरा प्रकार : स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान
अब तीसरे प्रकार के स्तेयानुषन्धी रौद्रध्यान का वर्णन करते हैं:विवेचन :
___ तीसरे प्रकार का रोद्रध्यान चोरी के क्र र चितन में से उत्पन्न होता है। 'दूसरे के पैसे, दूसरे का माल, दूसरे की पत्नी पुत्रादि, दूसरे की जायदाद, साधना, सम्पत्ति आदि कैसे उठालू, किस तरह से हड़प कर लू.....' ऐसे क र चिंतन में तन्मय हो, वहां यह रौद्रध्यान हुआ। उसके उपायों का विचार, दांव पेच लगाने का विचार करना, सामने वाले की नजर बचाने, आंखों में धूल डालने आदि की तन्मय विचारधारा में चढता है। जंगल के डाकू और शहर के चोर तो यह रौद्रध्यान करें ही, पर साहूकार गिने जाने वाले भी जब कौटुम्बिक सगे सम्बन्धी का या दुकान के भागीदार या ग्राहक, व्यापारी या सेठ का कुछ उठा लेने के क्र र चिंतन में चढ जायं तो वे भी रौद्रध्यान वाले बनते हैं।