________________
( ८३ )
पुव्वकय भासो भावणाहि झाणस्स जोग्गयमुवेई | ताय ना दंसण चरित वरेग्गनियताओ ||३०||
अर्थः- ध्यान से पहले भावनाओं से अथवा भावनाओं का अभ्यास करने से ध्यान की योग्यता प्राप्त होती है । ये भावनाएं ज्ञान दर्शन चारित्र तथा वैराग्य के साथ संबद्ध हैं ।
विवेचन :
धर्मं ध्यान क्या है उसका वर्णन करने के लिए इस प्रकार १२ द्वार हैं:
(१) ध्यान की भावनाएं उदा० ज्ञान भावना, दर्शन भावना आदि (२) ध्यान के लिए उचित देश या स्थान (३) उचित काल (४) उचित आसन ( ५ ) धर्म ध्यान के लिए आलम्बन जैसे वाचना आदि (६) ध्यान का क्रम मनोनिरोध आदि (७) ध्यान का विषय ध्येय जैसे जिनाज्ञा, विपाक आदि । ( ८ ) ध्याता कौन ? अप्रमाद आदि वाले ( ९ ) अनुप्रेक्षा याने ध्यान रुकने पर चिंतन करने योग्य अनित्यता, अशरणता आदि का आलोचन (१०) धर्मध्यानी की शुद्ध लेश्या (११) धर्मध्यान का लिंग, सम्यग् श्रद्धा आदि और ( १२ )
1
ध्यान का फल |
इन १२ द्वारों से धर्मं ध्यान का अच्छा परिचय प्राप्त करके उसकी भावना, कारण, आलम्बन आदि का अच्छा अभ्यास प्राप्त करके धमध्यान करना और उसके बाद पराकाष्ठा पर पहुंचकर शुक्ल ध्यान करें ।
ये १२ द्वारों के नाम बताने के बाद अब प्रत्येक द्वार के बारे में ग्रन्थकार विस्तार से कहेंगे ।