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प्रश्न- जिनपचन याने द्वादशांगी आगम । यह तो प्रत्येक जिनेश्वर भगवान के शासन में नये सिरे से रचा जाता है और शासन का विच्छेद होने पर उसका भी नाश होता है। तो फिर वह अनादि निधन किस तरह ?
उत्तर द्रव्यादि की अपेक्षा से अनादि निधन है। कहा है कि 'द्रव्यार्थादेश से यह द्वादशांगी कभी नहीं थी ऐसा नहीं है, न ही ऐसा है कि भविष्य में कभी न हो।'
द्रव्यार्थादेश का अर्थ क्या ? द्वादशांगी आगम जिस पदार्थ का निरूपण करता है उसमें दो मुख्य चीजें हैं। धर्मास्तिकायादि द्रव्य तथा उसके स्वपर पर्याय । अतः पदार्थ के दो अर्थ द्रव्यार्थं तवा पर्यायार्थ । इसमें द्रव्यार्थं की दृष्टि याने द्रव्यार्थादेश से देखें तो प्रत्येक जिनेन्द्र भगवान की द्वादशांगी चाहे शब्द रचना से अलग अलग हो, परन्तु सभी द्वादशांगी उन्हीं धर्मास्तिकायादि द्रव्यों का निरूपण करती है; क्यों कि ये मूल द्रव्य कभी अन्य रूप में होते ही नहीं हैं या सर्वथा नाश भी नहीं होता । पोय चाहे बदले, पर द्रव्य नहीं बदलते। द्रव्य वह का वही रहता है । अतः वर्तमान द्वादशांगी भी उन्हीं द्रव्यों का जो भूत भविष्य की द्वादशांमी का विषय है. उसी का प्रतिपादन करती होने से द्रव्यार्थ की दृष्टि से वह भूत भावी द्वादशांगी स्वरूप ही है। इसीलिए इसे अनादि अनन्त कहते हैं । तो अनादि अनन्त इन्हीं द्रव्यों को कहने वाला द्वादशांगीमय जिनवचन कैसा शाश्वत, टंकसाली और त्रिकालाबाधित ! जिन वचन की ही यह विशेषता, जगत में अन्य किसी वचन की नहीं । वाह धन्य जिनाज्ञा ! इस तरह जिनाज्ञा की अनादि अनन्तता का चिन्तन करे।
(३) भूतहिताः पुनः सोचे कि जिनाज्ञा जिनवचन कैसा