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कहा है कि 'रत्नादि कीमती द्रव्यों वाले बड़े रत्नाकर तथा तीनों लोक सहित समस्त इतर शास्त्र इस परम प्रभावी जिनवचन का मूल्य निश्चित करने के लिए कुछ भी उपयोगी नहीं हैं । क्योंकि जिनवचन अमूल्य है । यदि इसका मूल्य निश्चित हो नहीं किया जा सकता तो फिर उसकी कीमत किसके बराबर है इसका अंक कैसे रखा जाय या निश्चित किया जाय ? स्तुतिकर्ता ने कहा हैं कि
ल्पद्र मः कल्पितमात्रदायी, चिन्तामणिश्चिन्तितमेव दत्ते । जिनेन्द्रधर्मातिशयं विचिन्तय, द्वयेपिलोको लघुतामवेति ।।
अर्थ:-कल्पवृक्ष तो केवल कल्पना में आया हुआ ही दे सकता है और चिंतामणि भी चिंतित पदार्थं ही दे सकता है। विचारक लोग जिनेन्द्र भगवान के धर्म का अतिशय सोच कर (इसकी अपेक्षा कल्पवृक्ष तथा चिंतामणि) दोनों को हलका मानते हैं ।
'अणग्ध' शब्द का एक अर्थ अनर्घ्य है। उसका दूसरा अर्थ 'ऋणघ्न' भी होता है । 'अणग्घ' में अण का अर्थ ऋण है। प्राकृत में ऋ का अ होता है । ऋण को काटने वाला ऋणघ्न ।
(ii) ऋणघ्नः अहो जिनवचन कैसा जबरदस्त ऋण या कर्मों का नाश करने वाला है ! कहा है :
जं अन्नाणी कम्म खवेइ बहुयाहिं वासकोडिहिं । तं नाणी तिहिं गुतो खवेइ ऊसास मित्तेणं ॥ ___ अर्थः- अज्ञानी कई करोड़ों वर्षों तक जो कर्म खपाता है, उतने कर्म तीन गुप्ति सहित गुप्त ज्ञानीपुरुष मात्र एक श्वासोश्वास में में खपाता है।
जीव जब क्षपक श्रेणी में ले जाने वाले शुक्लध्यान में चढता है, तब मन वचन काया की उत्कृष्ट गुप्ति करने वाला और महाज्ञानी