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बना हुआ होता है, वहां वह जिनवचनानुसार तत्त्वरमणता का अभ्यास करके एक श्वास जितने समय में ऐसे खूब बड़े ढेर के समान कर्मो को खपाता है कि जिसको खपाने के लिए अज्ञानी को करोड़ों वर्ष कष्ट सहन करना पड़े। तो क्षण में यह करवाने वाला जिनवचन कितना जबरदस्त ऋणघ्न याने कर्म का नाश करने वाला है।
(६) अमिताः जिनाज्ञा की अमितता का चिंतन करे। 'अमित' के दो अर्थ होते हैं । १. अपरिमित तथा २. अमृत । पर में वह सोचे कि 'अहो जिनवचन कैसा अपरिमित है ?' अलवत्त जिनागम जिनवचन सूत्राक्षर से परिमित है, परन्तु अर्थ से तो अपरिमित है । कहा है:'सम्वनईणं जा होज्ज वालुया सव्वउदहीणं ज़ उदयं । एनोवि अणंतगुणो अत्थो एगस्स सुत्तस्स ।'
एक सूत्र का अनन्त अर्थ किस तरह से ? सर्व नदियों की जितनी रेती हो, सर्व समुद्रों का जितना पानी हो, उससे भा अनन्तगुना एक सूत्र का अर्थ है। जिनवचन के प्रत्येक सूत्र का इतना ज्यादा अर्थ होने का कारण यह है कि जिनवचन प्रत्येक अर्थ पदार्थ का अनेक मार्गणा द्वारों से तथा अनन्त अनुवृत्ति व्यावृत्ति पयायों से विचार करने का बताता है।
इस तरह अनेक अर्थ निकलने के कारण जिन वचन कैसा 'अमिय' याने अमित अपरिमित !
अमिय का दूसरा अर्थः-अमृत याने मीठी, पथ्य तथा सजीव ।
(i) जिनाज्ञा अत्यन्त मधुर है । कहा है कि जिनवचन रूपी लड्डु रात दिन खाता रहे तो भी बोध-प्रेमी आत्मा को तृप्ति नहीं