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(९८ ) अन्य मिथ्यादृष्टि के देव-गुरु-धर्म व्रत आदि की स्तुति, गुणगान या वाहवाही पुकारे । उदा० पाखण्डी के मत की प्रशंसा करे।
३६३ पाखण्डी व्रत को या मत को संस्कृत में 'पाखण्ड' कहते हैं। मिथ्यादृष्टि के ३६३ पाखण्ड याने मत होते है।
असीइसयं किरियाणं अकिरियवाईण होइ चुलमीती । अण्णाणिय सत्तट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसं ॥
अर्थः-क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी ८४, अज्ञानी के ६७ तथा वैनयिक के ३२ मिल कर कुल ( १८०+८४+६७+३२ =३६३ ) ३६३ हुए। वे इस तरह हैं:-क्रियावादी याने अस्तित्ववादी । जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, सवर, बध, निर्जरा, मोक्ष इन नव तत्त्वों में से प्रत्येक को स्वत: या परतः अस्ति ( है वैसा ) माने। वह भी नित्य या अनित्य तथा काल से, ईश्वर से, आत्मा से, नियति से, या स्वभाव से अस्ति माने । उदा० जीव काल से स्वतः नित्य है, जीव ईश्वर से स्वत : नित्य है ।....इस तरह प्रत्येक तत्त्व को लेकर गिनने से ६x२x२४५ = १८० भेद क्रियावादी के हुए।
अक्रियावादी याने नास्तिवादी, 'पुण्य पापसिवाय के सात तत्त्व लेकर, वे स्वतः या परतः नहीं है, वे भी काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव, यदृच्छा में से एकेक से नहीं है' ऐसा मानता है । वह कहता है किसी भी अवस्थित पदार्थ में उत्पत्ति आदि क्रिया नहीं होती-घटित नहीं होती। यदि उत्पत्ति है तो वह पहले अवस्थित हो हो नहीं सकती।
"क्षणिकाः सर्व संस्काराः, अस्थितानां कुतः क्रिया । भूतियेषां क्रिया सैव, कारकः सैव चोच्यते ।।"