________________
( ११५ )
इस तरह से धर्म और शुक्ल ध्यान पर विचार करने के लिए द्वार गाथा में कहे हुए प्रथम द्वार 'भावना' का विचार किया । ध्यान के लिए देश (स्थान)
अब देश द्वार का विचार करते हैं:
विवेचन :
ध्यान के लिए स्थान युवती आदि से रहित होना चाहिये । यों तो केवल ध्यान-काल में ही नहीं, किन्तु हमेशा मुनि के रहने का स्थान स्त्री आदि के वास या संचार से रहित एकान्त होना चाहिये, ऐसा तीर्थंङ्कर भगवान तथा गणधर देवों ने कहा है । अतः ध्यानकाल में तो खास करके ऐसा एकान्त स्थान होना ही चाहिये, जरूरी है । कोई भी मानवी स्त्री या देवी, पशु स्त्री या नपुंसक या जुआरी आदि कुशील का संपर्क नहीं होना चाहिये। इन सबसे अलिप्त स्थान होना चाहिये । क्योंकि स्त्री आदि के सम्पर्क वाले स्थान में जिनागम कथित दोषों की उत्पत्ति होती है ।
में
सामान्य रूप से ब्रह्मचर्यं पालन करने वाले के लिए भी नौ बाड़ से यह एक बाड़ ( Fence ) पालन करने की है कि स्त्री आदि के वास या संचार से रहित निवास स्थान होना चाहिये । तो साधु के लिए तो विशेषतः ऐसा एकान्त स्थान जरूरी है । स्त्री चाहे वह पशु स्त्री हो, विजातीय तत्त्व है, अतः उसका दर्शन कामवासना का उत्तेजक है । नपुंसक तीव्र वासना से पीड़ित होने से चाहे जैसी चेष्टा करे, इससे वह भी कामोद्दीपक बनता है । अनादि मोह के संस्कार सम्पूर्ण वीतराग होने के पहले सर्वथा नष्ट नहीं होते; इससे निमित्त मिलने पर वे उबुद्ध या जाग्रत् बन कर जीव को मोह - मूढ कर देने की पूर्णं सम्भावना है। इसीलिए ऐसे निमित्त से दूर रहना खास जरुरी है । विजातीय तत्व स्त्री एक ऐसा ही निमित्त है ।
1