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सिमि समारोह दढदव्वालंबो जहापुरसो | सुताइ कयालंबो तह भाखवरं समारुहई || ४३ ॥
अर्थ : - जिस तरह मनुष्य नीचे के किसी स्थान से मजबूत रस्सी आदि द्रव्य के आलम्बन से ऊपर चढ जाता है, उसी तरह सूत्रादि का आलम्बन करने वाला उत्तम ध्यान ( धर्मं ध्यान ) पर चढ जाता है ।
क्रिया, देव-वन्दन की क्रिया आदि बराबर शास्त्रोक्त विधिपूर्वक किये जायं । ये सब साधु का आचार है और वे चारित्रधर्म में सुन्दर आवश्यक हैं याने अवश्य कर्तव्य हैं ।
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इस तरह श्रुत धर्म के वाचना पृच्छना आदि सत्कृत्य तथा चारित्र धर्म के सामायिकादि आवश्यक सत्कर्तव्य ध्यान के लिए आलम्बन रूप हैं । उसमें मन लग जाय, तो धर्मं ध्यान सुलभ (सरल) बन जाता है । ये आलम्बन के पदार्थ भी बताते हैं कि ध्यान के अर्थों को संसार की बेकार बातों (उधेड़बुन) में से छूट कर ऐसी प्रवृत्ति में लग जाना चाहिये ।
अब इन श्रुत चारित्र धर्म के अंगों को ही आलम्बन रूप क्यों कहा, उसका कारण बताते हैं:
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विवेचन :
मनुष्य किसी कुए आदि में गिर गया हो तो उसे किसी मजबूत रस्सी आदि का आलम्बन या आधार के रूप में मिलने पर उसके आधार से ऊपर चढ जाता है । वह चढ़ेगा अपने पुरुषार्थं तथा अपनी शक्ति से ही, किन्तु रस्सी या सीढी आदि कुछ भी साधन, आधार या आलम्बन नहीं मिले तो वह नहीं चढ सकता । इसी तरह यहां दुर्ध्यान कुंविकल्प आदि में पड़ा हुआ जीव गणधरादि