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वैसे जबरदस्त पापकर्मों को नष्ट कर सकता है। इस तरह आसनद्वार का वर्णन हुआ।
ध्यान के लिए आलंबन अब आलंबन द्वार का अवयव अर्थ बताने के लिए कहते हैं:विवेचन :
पूर्व-कथित ज्ञान-भावनादि चार भावनाओं से मन को अच्छी तरह भावित किया हो अत: आत्मा योग्य देशकाल आसन में 'त्रिविध योगों को स्वस्थ रखने के लिए अभ्यस्त हआ। वह आज्ञाविचय आदि धर्मध्यान में कौन कौन से आलंबन से चढ सकता है अर्थात् ऐसी कौन कौन सी प्रवृत्ति रखे कि उसके आधार पर धर्म ध्यान हो । ये आलम्बन यहां बताते हैं ।
इसमें पहला आलम्बन 'वाचना' है । वाचना याने गणधरदेव आदि द्वारा रचित सूत्र का योग्य शिष्य को धर्म निर्जरा के हेतु से दान देना चाहिये, सूत्र पढाना चाहिये। वह पढ़ाने में उसका अर्थ पढ़ाना भी समाविष्ट होता है। उपलक्षण से सूत्र अर्थ का ग्रहण याने गुरु के पास सूत्रार्थ पढ़ने का समझ लेना चाहिये । इस वाचना का आलम्बन यानी प्रवृत्ति रखे तो उसमें मन एकाग्र होने से धर्मध्यान में चढ सकता है। ___इसी तरह 'पृच्छना' अर्थात् पढ़े हुए में जहां शंका हो, प्रश्न उठे, तो गुरु के पास जाकर उसके निराकरण के लिए विनय से पूछे। फिर 'परियट्टण' अर्थात् पढ़े हुए सूत्र व अर्थ को भुलाया न जाय, और वाचना के अतिरिक्त समय में भी शुभ प्रवृत्ति रहे उसके लिए पढ़े हुए सूत्र अर्थ का परावर्तन पुनरावृत्ति पारायण करे । वैसे ही 'अनुचिंता' अर्थात् सूत्रादि का विस्मरण न हो उसके लिए मन से ही चिंतन करे। यह 'वायण पुच्छरण परियट्टणाऽचिंताओ' का द्वन्द्व समास हुआ।