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लिंगाई तस्स उस्सण्ण-बहुल नाणाविहाऽऽमरणदोसा । तेसि-चिय हिंसाइसु बाहिरकरणोवउत्तस्स ॥२६॥
अर्थः- रोद्रध्यानी के लिंग, चिह्न ये हैं:उत्सन्न दोष, बहुल दोष, नानाविध दोष और आमरण दोष । (रौद्रध्यान के एक प्रकार में सतत प्रवृत्ति; चारों प्रकार में बहुत प्रवृत्ति, हिंसादि के उपायों में अनेक बार प्रवृत्ति और स्व या पर के मृत्यु तक भी असंताप ।) ये लिंग हिंसा मृषा आदि में बाह्य साधन वाणो काया द्वारा भी लगे हुए को होते हैं:समय में कोणिक द्वं पायन पर तीव्र द्वेष उठने से हिसानुबन्धी रौद्रध्यान आया तो वहां तीन संक्लेश वाली कृष्ण लेश्या आ गई।
रौद्रध्यानी के बाह्य लिंग-लक्षण .. अब रौद्रध्यान वाला किन लिंग या लक्षणों से पहचाना जाता है वह बताते हैं:विवेचन :
हृदय में, मन में, रौद्रध्यान की प्रवृत्ति चलती है, उसका पता नीचे के चिह्नों से चलता हैः ।
पहले तो अन्तर के रौद्रध्यान के अनुरूप वचन और कायारूपी बाह्य साधन से हिंसा मृषा आदि में जीव लगा हुआ रहता है। उदा० हिसा के बारे में कहता हो, ‘मार डालूगा, मुह तोड़ दूंगा....उन लुच्चों को तो मार ही डालना चाहिये ... इत्यादि । यह हिंसानुबंधी ध्यान के बारे में हुआ। वैसे ही मृषानुबन्धी ध्यान के बारे में कहे, 'आज सच बोलने वाले की दुनिया नहीं है। उनके आगे तो झूठ ही चलाना चाहिये । उसकी पोल तो खोलना ही चाहिये' आदि । स्तेयानुबन्धी में वह बोलता है; "आज के श्रीमन्तों को तो लूट ना ही