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.... परव सणं अहिनंदइ निरवेक्खो निद्दो निरगुतायो । . हरिसिज्जइ कयपावो रोदझाणोवगचित्तो ॥२७।। - अर्थः-दूसरे के कष्ट पर खुश होना, इहलोक परलोक भय से बेपरवाह, निर्दय होना, पश्चात्ताप रहित होना और पाप करके खुश होना ये सब रौद्रध्यान प्राप्त चित्त के लक्षण हैं।
हिंसा के उपाय कहलाते हैं। उसमें तथा झूठ चोरी संरक्षण के विविध उपायों में प्रवृत्ति करता हो। और । . (8) आमरण दोष-याने चाहे अपना या सामने वाले का मृत्यु हो जाय वहां तक उसे अपने हिंसादि दुष्कृत्य का कोई पश्चात्ताप ही न हो। उदा० कालसौकरिक कसाई को श्रेणिक राजा ने कुएं में उलटा लटका दिया, जिससे वह हिंसा बन्द करे, परन्तु उसने तो वहां भी मिट्टी से ही कुए की दीवार पर भंस बना बनाकर उन्हें काटता रहा। यह तो केवल उलटा ही लटकाया गया था, पर मरता तो भी क्या ? हिंसा का रोष, खुन्नस पूरा ही नहीं होता।
यों वचन से या काया से झूठ, चोरी तथा संरक्षण में प्रवृत्ति करे ये सब रौद्रध्यान के चिह्न हैं । ___ अब दूसरे चिह्न कहते हैं:विवेचन : . जिसका चित्त रौद्रध्यान में चढ़ा हुआ होता है उसके अन्य
भी कुछ चिह्न होते हैं। वे ये हैं:. (५) दूसरे पर आफत कष्ट या संकट आवे तो उस पर खुश होता है। चित्त बहुत संक्लेश वाला होने से उस पर खुश होकर कहे, 'यह अच्छा हुआ कि उस पर आफत आई। वह इसी के लायक था। .