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( ७३ ) इसी तरह कोई झूठ बोला, किसी ने गाली दी, चुगली खाई, भयंकर गवाही दी, वह पसंद आने पर अनुमोदना का क्रूर चिंतन होता है । ऐसे किसी के किये हुए चोरी, लूट, उठाइगिरी के बारे में खुशी का चिंतन हो; अथवा चतुराई से, चालाको से दूसरे को मार डालने तक की तैयारी से धन के संरक्षण करने की अनुमोदना का चितन हो। उदा० सेफ डिपोजिट वोल्ट में चालू बिजली के पॉवर सहित धन रक्षा होती है कि जिसमें कोई लेने घुसे तो बिजली के करेन्ट से चिपक कर मर जाय, तो ऐसी धन रक्षा पर खुशी का चिंतन हो जैसे 'वाह ! यह अच्छा संरक्षण है ! चोरी करने आने वाला हरामी खतम ही हो जाय ! इत्यादि चिंतन क्रूर होने से रोद्रध्यान होता रहता है।
आज के भौतिकता, धनप्रीति, विजयासक्ति, मशीनरी, अखबार आदि के युग में अपने जीवन को चारों ओर से जांचें तो पता चलेगा कि कभा कभी हिंसा, झूठ, चोरी, संरक्षण स्वयं करने के बारे में क्रू र चिंतन चाहे नहीं किया हो, पर करवाने या अनुमोदना करने के बारे में क्रूर चिंतन आ जाता है या नहीं ? यदि ऐसा चिंतन हो तो वह रौद्रध्यान के घर का चिंतन होगा।
रौद्रध्यान के स्वामी कौन ? अर्थात् कौन से गुण स्थानक तक के जीवों को रौद्रध्यान आ सकता है ? वह कहते हैं:
मिथ्यादृष्टि जीवों को तो विचारों को सच्चे तत्त्व का पता ही नहीं, श्रद्धा ही नहीं अतः वे रौद्रध्यान में फंस जाय, परन्तु अविरति याने व्रत रहित सम्यग्दृष्टि तथा व्रतधारी देवविरति श्रावक भी मौके पर फंस जाते हैं। सर्व विरतिधर मुनि को रौद्रध्यान नहीं होता; क्योंकि वह हिंसादि पापों से मन वचन काया से प्रतिज्ञाबद्ध होकर सर्वथा विरमित है; अत: वह कदाचित् प्रमाद के कारण आतध्यान में चढ जाय पर रोद्र में नहीं। अन्यथा तो रोद्र
हागा।