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कि कोई व्यक्ति अपने उत्तम या अच्छे कार्य के लिए बाहर जा रहा हो उसे अपशकुन करने वाला वचन कहे जैसे 'कुछ होने का नहीं है। इसमें तो उलटा हो जावेगा....' इत्यादि ।
___ असत् तरंग से रोद्रध्यान ____अब रौद्रध्यान की बात ऐसी है कि ऐसे शब्द चाहे बोलता न हो, पर उस समय भी वैसा बोलने का निष्ठुरता से दृढतापूर्वक चिंतन करता हो तो वह रौद्रध्यान होता है। मनुष्य हलके ढंग से सोचते हुए या मन तरंगों में झूठ के किसी एक या दूसरे प्रकार के वचनों का चिंतन करता रहता है। वहां वह रौद्रध्यान में क्यों नहीं चढ़ जावेगा? कोर्ट में गवाही देना हो तब सचमुच में तो पता नहीं क्या पूछा जायेगा; परन्तु मूढ मनुष्य पहले से विचारों में चढ़ता है कि, 'कोर्ट में यह पूछा जायगा, वह पूछा जायगा.... तो मुझे जो आता है ऐसे असत्य उत्तर दे दूंगा।' चाहे फिर वैसा बोलने का उसे कोई मौका ही न मिले। तब भी ऐसे निष्ठुर चिंतन में रौद्रध्यान आते क्या देर लगेगी। वैसे पुत्र या नौकर आदि सचमुच में कसूर में न हो, तब भी पिता या सेठ उसका कसूर समझ कर भयंकर गुस्से में सोचे, 'हरामखोर को आने तो दो, ऐसे भारी तिरस्कार के वचन सुनाकर उसे सीधा कर दूंगा।' परन्तु बाद में जब वह आकर स्पष्टता करे तो क्रोध उतर जाता है । तब भी पहले जो चिंतन किया वह तो रोद्रध्यान की कक्षा का भी हो चुका हो। ___ यह रौद्रध्यान किस किस तरह आता है ?
कपटी जीव उदा० व्यापारी आदि, जिसे दूसरों के पास से येनकेन प्रकार से स्वार्थ साधन करना हो तो उसे किसी तरह फंसाने के लिए संकल्प करता (सोचता है। मैं उसे यह कहूंगा, असत्य को सत्य के रूप में उसके गले उतार दूंगा।...' ऐसे असत्य भाषण,