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विवेचन :
मृषानुबन्धी रौद्रध्यान उस प्रकार के दुष्ट वचन बोलने के उग्र चिंतन से होता है। दूसरे की चुगली खाने का सोचे, अपने आपको दूसरे नापसंद बात किसी के सामने नमक मिर्च लगा कर कह देने की निश्चित उग्र व क्रू र इच्छा (धारण) करे तो वह रौद्रध्यान होता है। वैसे हो तिरस्कार वचन, गाली, अपशब्द या अधम असभ्य शब्द सुना देने का सोचे अथवा असत्य बोलने का सोचे तो यह भी रौद्रध्यान है।
असत्य वचन के तीन प्रकार:-१. अभूतोद् भावन, २. भूत निन्हव और (३) अर्थान्तर कथन। (१) अभूतोद्भावन याने न हो वैसी वस्तु कहना। उदा० आत्मा विश्वव्यापी नहीं हैं तब भी कहना कि 'वह विश्य व्यापी है।' स्वयं श्रीमन्त या विद्वान हो तो भी कहे, 'मैं श्रीमन्न हूं विशान हूँ।' (२) 'भूत निन्हव' याने जो वस्तु हो उसका निषेध करे या उसे गलत बतावे। उदा० यह कहे कि 'आत्मा जैसी वस्तु ही नहीं है।' पैसेदार हो तब भी कहे 'मेरे पास पैसे नहीं हैं।' (३) 'अर्थान्तर कथन' याने एक पदार्थ को दूसरा ही पदार्थ कहना। उदा० बल को घोड़ा कहे, असाधु को साधु कहे.... इत्यादि।
इसी तरह "भूतोपधाती' वचन याने ऐसा बोले कि जिसके पीछे पीड़ा, वेदना या हिंसा हो। उदा० कहे 'काट दे, चीर डाल, सेक कर गरम कर दे, मार....' इत्यादि। अलबत्ता इन वचनों में कोई प्रत्येक्ष असत्य नहीं दिखता, पर उसमें परिणाम जीव घात का है, अत: यह वस्तुगत्या मृषा ही हैं।
उपरोक्त वचनों में प्रकारांतर से अनेक वचन आते हैं। उदा० 'पिशुन' के रूप में कई प्रकार के अनिष्ट सूचक वचन होते हैं; जैसे