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से हिंसा का करना, कराना या अनुमोदन करना हो वह अवद्य । ऐसे पापों से रहित निरवद्य उपचार का मुनि सेवन करे । अथवा जिसमें बहुत अल्प पाप हो, वैसे (अल्प) सावद्य उपचार का सेवन करे । उदा० दवा या पथ्य के लिए ही गांव में तीन बार घूमकर आने पर भी स्वाभाविक रूप से गृहस्थ ने अपने लिए तैयार किया हुआ औषध या पथ्य नहीं मिला, तो अति अल्प दोष वाला ( तैयार करवाया हुआ ) लेना पड़े ।
उपरोक्त प्रकार का सालंबसेवी अल्पसावद्य का सेवन करे तो भी वह निर्दोष है। क्योंकि उसकी निर्दोषता के बारे में यह शास्त्र वचन मिलता है कि 'गीयत्थो जयगाए कडजोगी कारणंमि निद्दोसो ।' अर्थात् गीतार्थ याने शास्त्रज्ञ पुरुष रत्नत्रयी के पालन के लिए कारण उपस्थित होने पर यतनापूर्वक त्रिपर्यटनादि शास्त्र विधि का ध्यान रखकर दोष वाला पदार्थ सेवन करे तो भी वह निर्दोष है प्रश्न - जैन शास्त्र ऐसे दोष वाला सेवन करने का क्यों कहता है ?
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उत्तर - जिनागम उत्सगं तथा अपवाद दोनों सहित मार्ग बताता है । 'उत्सर्ग' याने मुख्य विधि या निषेध । 'अपवाद' याने दिखावे में उसके विरुद्ध परन्तु अन्तिम परिणाम के रूप में उसके अनुकूल होने वाला आचरण । प्रसंग आने पर यह जरूरी होता है । अन्यथा अकेले उत्सर्ग का आग्रह रखने पर, किसी ऐसी परिस्थिति में वह सम्भव न हो तो उससे परलोकहित का साधन असम्भव बन जायगा । उदा० एकदम तीव्र बीमारी आ गई। निर्दोष दवा तथा पथ्य नहीं मिलते। अब यदि सदोष दवा पथ्य का सेवन करता है तो उसमें उत्सर्ग मार्ग जिसमें आरम्भ समारम्भ का न करवाना या अननुमोदन होता है, उससे विरुद्ध बर्ताव करना पड़ता है; अतः यदि वह वैसा नहीं ले, तो बीमारी के कारण अन्य साधनाएं कम या नष्ट