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होती हैं, जिससे परिणामस्वरूप चारित्र के उत्सर्ग मार्ग का पालन न होकर उलटा परलोक बिगड़ता है। अत: ऐसे अवसर पर सदोष उपचार का सेवन भी कर ले वह अपवाद मार्ग हुआ। उसमें उद्देश्य शुद्ध होने से वह आर्त ध्यान नहीं है, पर धर्म ध्यान है। यह वेदना या पीड़ा में उसके प्रतीकार का बात हुई। (३) तर संयम से ससार के दुःखवियोग के चिंतन में
आर्त ध्यान क्यों नहीं ? प्रश्न अनिष्ट संसारदुःख के वियोग का ध्यान आर्त्त ध्यान क्यों नहीं है ?
उत्तर-- अनिष्ट संसारदु:ख के वियोग के ध्यान में आर्त ध्यान इसलिए नहीं है कि इसमें तो वह देवी सुखों को भी दुःखरूप समझ कर उसके भी वियोग की इच्छा रखता है; परन्तु नरक या तिर्यंच के दु:ख मिट कर मनुष्य तथा देव के सुख प्राप्ति की इच्छा नहीं है। उधर अनिष्ट वियोग के आर्त ध्यान वाले को तो इष्ट विषय सुखों का योग चाहिये। उदा० 'यह गरीबी या यह अपमान कैसे जाय ?' इस चिंतन में पैसे तथा सम्मान की इच्छा है। तप संयम का सेवन करने वाले मुनि तो संसार के सब सुख दुःखों के वियोग की इच्छा करके उसके प्रतीकार स्वरूप तप संयम का सेवन करते हैं।
प्रश्न- तप और संयम सांसारिक दु:ख के प्रतिकार किस तरह हैं ?
उत्तर- तप और संयम दो तरह से सांसारिक दुःख हटाते हैं। एक वर्तमान में तथा दूसरे भविष्य में। (१) वर्तमान दुःख ये हैं-बार बार भूख लगना, इष्ट रस की इच्छा का उठना, अनुकूल प्राप्ति की झंखना (सतत इच्छा) होना, प्रतिकूल का भय लगते रहना, इन्द्रियों के विषय विकारों का जागना, द्वेष, ईर्ष्या आदि मन के