________________ प्रकृति बन्ध के इन भेदों में जो फल देने की शक्ति है उसे अनुभाग कहते हैं और उनका अनुभाग के साथ आत्मा के प्रदेशों से एकमेक होना अनुभाग बन्ध कहलाता है। इनमें जिनका तीव्र अनुभाग बन्ध होता है उनका तीव्रता से उदय होता है और जिनका मन्द अनुभाग बन्ध होता है तो उनका मन्दता से उदय होता है। इस अनुभाग बन्ध में भी घातिया कर्म और अघातिया कर्म की अपेक्षा विशेषता आती है। हम निम्न तालिका के द्वारा इसको समझ सकते हैं। घातिया कर्म पापरूप ही होते हैं इसलिये उनका अनुभाग भी पापरूप होता है। . लता दारु (लकड़ी) अस्थि शैल . . 1-25 26-50 51-75 76-100 .. इनमें लता एवं दारु का एक भाग देशघाती होता है और दारु के एक भाग के आगे का भाग अस्थि एवं शैल रूप सर्वघाती होती है। इनमें सम्यग्दृष्टि जीव द्विस्थानीय अर्थात् लता एवं दारु रूप ही अनुभाग बन्ध करता है और श्रेणी वाला जीव लता रूप ही अनुभाग बन्ध करता है। मिथ्यादृष्टि चतुस्थानीय अर्थात् लता, दारु, अस्थि और शैल रूप अनुभाग बन्ध करता है। अघातिया कर्मों में पाप प्रकृतियाँ और पुण्य प्रकृतियाँ दोनों होती हैं, इसीलिए अघातिया कर्मों का अनुभाग भी पापरूप और पुण्यरूप होगा। दोनों को तालिका के द्वारा समझते हैं नीम कांजी विष हलाहल 1-25 26-50 51-75 76-100 इनमें सम्यग्दृष्टि जीव द्विस्थानीय अर्थात् नीम और कांजी रूप अनुभाग बांधता है और 9वें गुणस्थान तक श्रेणी में नीमरूप ही अनुभाग बन्ध होता है एवं मिथ्यादृष्टि चतुस्थानीय अर्थात् नीम, कांजी, विष, हलाहल रूप अनुभाग बन्ध करता है। इसी प्रकार अघातिया कर्मों की पुण्य प्रकृतियों का अनुभाग बन्ध भी तालिका के द्वारा समझते हैं 43 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org