________________ ही में क्षय ही पाया जाता है। उपशम श्रेणी वाला इस गुणस्थान से आगे बढ़कर 11वें गणस्थान में जाता है तथा क्षपक श्रेणी वाला जीव 12वें गुणस्थान में जाता है। इस गणस्थान में सूक्ष्मसाम्पराय नामक चारित्र होता है जो कि यथाख्यात चारित्र से किञ्चित् न्यून होता है। सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान की विशेषतायें * चारित्र मोहनीय सम्बन्धी बीस प्रकृतियों का उपशम हो जाने के बाद संज्वलन , लोभ कषाय जहाँ सूक्ष्मतर रह जाती है उसे सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान कहते हैं। * साम्पराय अर्थात् कषाय, जहाँ कषाय सूक्ष्म होती है उसे सूक्ष्म साम्पराय कहते हैं। * जहाँ यथाख्यात चारित्र से कुछ न्यून चारित्र होता है उसे सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान कहते हैं। * इस गुणस्थान में कषाय क्रमशः सूक्ष्मतर होती जाती है और गुणस्थान के अन्त में उसका उपशम या क्षय हो जाता है। * इस गुणस्थान का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त एवं सामान्यावस्था में जघन्य काल भी . अन्तर्मुहुर्त है, परन्तु मरणापेक्षा एक समय है। * उपशम श्रेणी वाला यहाँ से ऊपर ग्यारहवें गुणस्थान को, क्षपक श्रेणी वाला 12वें गुणस्थान को प्राप्त होता है। * उपशम श्रेणी से कालक्षय की अपेक्षा गिरने वाला 9वें गुणस्थान को प्राप्त होता * यदि उपशम श्रेणी चढ़ते समय अथवा उतरते समय मरण हो जावे तो यह जीव नियम से चौथे गुणस्थान को प्राप्त होता है। * इस गुणस्थान के अन्त में 16 प्रकृतियों की बंध व्युच्छित्ति होती है। वे 5 ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण, 5 अन्तराय, यशः कीर्ति एवं उच्चगोत्र हैं। * इस गुणस्थान में अबंध योग्य 103 प्रकृतियाँ हैं। इस गुणस्थान में क्षपक श्रेणी की अपेक्षा 46 प्रकृतियों का असत्त्व होता है। गो. जी. गा. 60 166 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org