________________ मानकर पूजता है। उसी प्रकार यहाँ इस जीव की स्थिति है। अतः ये परगत तत्त्व पञ्चपरमेष्ठी कुल देवता नहीं हैं, ये तो निजात्मदेव की प्राप्ति के साधन हैं। आचार्य देवसेन स्वामी का तात्पर्य यह है कि किसी भी भगवान् अथवा प्रतिमा में चमत्कार नहीं होता है अपितु इस जीव के द्वारा की जाने वाली निर्मल एवं शुद्धभावमय भक्ति ही चमत्कारी होती है। कोई भी बाह्य चमत्कार नहीं होता है। अब तो पञ्चपरमेष्ठी की भक्ति तब तक करना है जब तक कि समस्त सांसारिक पर्याय संतति से भटकना समाप्त न हो जाये और चैतन्य चित् चमत्कार सिद्ध अवस्था न प्राप्त हो जाये। 406 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org