________________ पालक होते हुए भी अपनी पत्नी की रक्षा न कर सके। सीता के विरह में गिरते. पडते. रोते थे और वन में पश-पक्षियों और पेड-पौधों से सीता के विषय में पूछते रहते थे। लंका तक पहुँचने के लिये समुद्र सेतु बनाया। रावण से साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति से काम लिया और क्रोध के वश से विभीषण के बताने पर रावण को मार पाये।' क्या रावण तीन लोक के बाहर लेकर गया था जो सीता को ढूँढ़ नहीं पा रहे थे। परम शक्तिशाली होते हुए भी रावण को सहजता से नहीं मार सके। अतः जो अपनी स्त्री की रक्षा नहीं कर सका वह लोक की रक्षा क्या करेगा? जब महादेव ने सबके समक्ष तीनों लोकों को जला दिया था तब भी विष्णु जगत् की रक्षा करने में समर्थ नहीं दिखे। कृष्ण के अवतार में ईश्वर होते हुए भी जनसामान्य के सदृश युद्ध में अर्जुन के सारथि बनकर कूटनीति से पाण्डवों को जिता दिया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विष्णु न तो तीनों लोकों के कर्ता हैं और न. ही पालनकर्ता। वे तो सिर्फ अलग-अलग अवतार धारण करके मरते हैं। यदि कोई यह कहे कि विष्ण शरीर रहित, सर्वदोषों से रहित और सिद्ध हैं एवं स्वेच्छा से मनष्यलोक में जन्म लेते हैं तो उसका निराकरण करते हुए आचार्य कहते हैं कि जैसे घी कभी मक्खन, मक्खन कभी दूध, रंधे हुए अन्न में अंकुर नहीं हो सकते उसी प्रकार एकबार सिद्धत्व को प्राप्त करने वाला कभी भी संसार में नहीं आता है। यदि वे शरीर रहित कर्ममल रहित हैं तो किस कारण से संसार में दु:खों को सहने के लिये आते हैं, क्योंकि एकबार सच्चा सुख प्राप्त कर लेने के पश्चात् कोई भी दुःख प्राप्त करना नहीं चाहता। यदि सदा सुखी ईश्वर होते हुए भी उनको संसार की चिन्ता रहती है तो वह निश्चित रूप से संसारी ही हैं, वह भगवान् नहीं हो सकते हैं। अतः उपर्युक्त कथन से यह समझना चाहिये कि जो 18 दोषों से रहित है. अनन्त ज्ञानी है और कर्ममल रहित वीतराग है वही परमात्मा हो सकता है। इन गणों से रहित कोई भी परमात्मा नहीं हो सकता। भा. सं. गा. 226-227 भा. सं. गा. 235-236 382 Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org