________________ तृतीय परिच्छेद : सृष्टि सम्बन्धी समीक्षा अब आगे मिश्र गुणस्थान के अन्तर्गत ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि के कार्यों का निराकरण करते हैं। मिश्र गुणस्थान का वर्णन तीसरे अध्याय में कर चुके हैं। अतः यहाँ पुनरावृत्ति करना उचित नहीं है। सबसे पहले ब्रह्मा के कार्यों का निराकरण करते हैं - आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं कि यदि ब्रह्मा तीनों लोकों को उत्पन्न कर सकता है तो फिर वह इन्द्र का स्वर्ग लेने के लिये (हड़पने) अपना लोक छोड़कर मनुष्य लोक में घोर तपस्या क्यों करता है? यह कुछ समझ में नहीं आता है कि जो ब्रह्मा सभी जीवों को उत्पन्न स्वयं करता है, नारकी, मनुष्य, देव, तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) सभी को बनाता है, अनेक कुल, जाति, योनियों को उत्पन्न करता है, सभी को आयु और धन-ऐश्वर्य आदि प्रदान करता है, पर्वत, नदी, सागर, द्वीप, ग्राम, नगर, पृथ्वी, आकाश आदि जड़ पदार्थों को क्षण मात्र में निर्मित कर देते हैं। तो फिर वह स्वर्ग का राज्य लेने के लिये तप क्यों करता है? वह स्वयं अन्य स्वर्ग उत्पन्न क्यों नहीं कर लेता है? वह अपने शरीर को व्यर्थ में क्यों तपाता है? जब तीनों लोकों को बनाता है तो वह अपने लिये एक स्वर्ग क्यों नहीं बना लेता है? यह बड़े आश्चर्य की बात है। इससे यह सिद्ध होता है कि ब्रह्मा अथवा अन्य कोई इस जगत का कर्त्ता नहीं हो सकता है। जबकि यह जगत स्वयं सिद्ध अकृत्रिम अनादिकाल से है, इसका कोई कर्ता-विशेष नहीं है। आगे आचार्य देवसेन स्वामी ब्रह्मा की चारित्रिक विशेषताओं को प्रदर्शित करते हुए कहते हैं - ब्रह्मा को तप करते देखकर चिन्तित इन्द्र ने तप भंग करने के लिये तिलोत्तमा नामक अप्सरा को भेजा। ब्रह्मा अप्सरा के प्रति आसक्त होकर उसका नृत्य देखने लगा। अप्सरा ने उसके चारों ओर नृत्य किया और ब्रह्मा ने अपने चारों तरफ मुख बना लिये और जब वह ऊपर नृत्य करने लगी तो उसने ऊपर भी एक सिर बना लिया, और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। यह देखकर सभी देव हँसे तो वह उनको गधे वाले मुख से भक्षण करने को उद्यत हुआ। सभी देव महादेव (शंकर) की शरण में गये। महादेव ने उस गधे वाले मुख को काट डाला तो वह कामवासना से संतप्त होकर निर्जन भा. सं. गा. 204-209 वही गा. 210 2 380 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org