________________ शिष्य गौतम आये तो दिव्यध्वनि खिरने लगी। वह गौतम ऋषि जिनशास्त्रों को नहीं जानता, वह तो वेदाभ्यासी है। अतः सिद्ध होता है कि मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से नहीं अज्ञान से होती है। यदि ज्ञान से ही मुक्ति होती है तो ग्यारह अंग के जानकार मेरे होते हुए भी दिव्यध्वनि अवश्य प्रगट होनी चाहिए थी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। इस संसार में कोई देव नहीं है। प्रत्येक जीव को अपनी इच्छा के अनुसार शून्य का ही ध्यान करना चाहिये। इस प्रकार मस्करी पूरण ने प्रकट करके अज्ञान मिथ्यात्व को प्रकट किया।' . इस प्रकार पाँचों मिथ्यात्व के स्वरूप, उत्पत्ति का कारण और कर्ता एवं निराकरण को बताया। अतः इन पाँचों मिथ्यात्वों को बुद्धिपूर्वक त्याग कर देना चाहिये, क्योंकि ये शुभगति से दूर करते हैं और दुःखों के साथी हैं। इसका साक्षात् उदाहरण यह है कि हम सब आज तक चतुर्गति रूप दु:खों को भोग रहे हैं, इनके त्यागने से ही संसार परिभ्रमण से छुटकारा मिलेगा, अन्यथा नहीं। अनादिकाल से अब तक इन मिथ्यात्वों का साथ हम देख चुके हैं और दु:खों में ही हैं और इनका साथ रहा तो अनन्तकाल तक ऐसी ही अवस्था बनी रहेगी। अतः इनका त्याग करके मनुष्य भव में जिन भगवान के वचनों का पालन करेंगे तो निश्चित ही मुक्ति की प्राप्ति होगी। भा. सं. गा. 161-164, द. सा. गा. 20-22 379 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org