________________ अर्थात् 'अहं' यह अक्षर परमेष्ठियों का ब्रह्मवाचक है और सिद्धचक्र का उत्तम तीज है, मैं इस बीज को सर्वदा नमस्कार करता हूँ। अब यहाँ पर पदस्थ ध्यान के योग्य मंत्रों को वर्णित करते हैं एकाक्षरी मंत्र अ, प्रणवमंत्र ॐ, अनाहत मंत्र हैं, मायावर्ण ह्रीं, क्ष्वीं, श्रीं दो अक्षरी मंत्र अहँ, सिद्ध तीन अक्षरी मंत्र ॐ नमः, ॐ सिद्ध, सिद्धेभ्यः चार अक्षरी मंत्र अरहंत/अरिहन्त, अर्ह सिद्धं, ॐ ह्रीं नमः पञ्चाक्षरी मंत्र अ सि आ उ सा, ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः, णमो सिद्धाणं, नमः सिद्धेभ्यः छः अक्षरी मंत्र अरहंत सिद्ध, ॐ नमो अर्हते, अर्हदभ्यो नमः, ॐ नमः सिद्धेभ्यः, नमोऽर्हत् सिद्धेभ्यः सप्ताक्षरी मंत्र णमो अरिहंताणं, नमः सर्व सिद्धेभ्यः अष्टाक्षरी मंत्र नमोऽर्हत् परमेष्ठिनः 13 अक्षरी मंत्र अर्हत्सिद्धसयोग केवली स्वाहा 16 अक्षरी मंत्र अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यो नमः 35 अक्षरी मंत्र णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं इसी प्रकार ध्यान करने योग्य मंत्रों के विषय में आचार्य नेमिचन्द्र स्वामी ने भी उल्लेख किया है पणतीस-सोलछप्पणचदुदुगमेगं च जवहझाएह। परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरुवएसेण॥' बृ. द्र. सं. गा. 48 267 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org