________________ दाता के अन्दर जो सात गुण होने चाहिये उन गुणों का वर्णन करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं कि - जिनको दान देना है उनमें जिसकी भक्ति हो, दान देने में जिसको सन्तोष हो, क्षमा को धारण करने वाला हो, देव-शास्त्र-गुरु में वा पात्र में श्रद्धा रखता हो, दान देने की शक्ति रखता हो, जिसके लोभ का त्याग हो और दान देने में क्या-क्या करना चाहिये इस बात का जिसको पूरा ज्ञान हो वही उत्तम दाता कहलाता है।' इसी प्रकार दाता के सात ही गुण रत्नकरण्डक श्रावकाचार की टीका करने वाले आचार्य प्रभाचन्द्र स्वामी ने भी उद्धृत किये हैं। उनमें भी दो अलग-अलग प्रतियों में दो प्रकार के सात गुण प्राप्त होते हैं। एक प्रति में श्रद्धा, सन्तोष, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा और सत्य ये गुण और दूसरी प्रति में श्रद्धा, शक्ति, अलुब्धता, भक्ति, ज्ञान, दया और क्षमा ये सात गुण बताये हैं। इन दोनों में सन्तोष के बदले शक्ति और सत्य के बदले दया का उल्लेख हुआ है। आचार्य अमृतचन्द्रसरि ने भी दाता के सात गण वर्णित किये हैं, जो इस प्रकार हैं - ऐहिकफल की अपेक्षा नहीं करना, शान्ति, निष्कपटता, अनसूया अर्थात् अन्य दातारों से ईर्ष्या नहीं करना, अविषादित्व, मुदित्व और निरहंकारित्वा' इन सातों में शान्ति-क्षमा को छोड़कर सभी नवीन गुणों का समावेश हुआ है। पं. आशाधर जी ने भी अपने ग्रन्थ में दाता के सात गुणों का वर्णन किया है वे इस प्रकार हैं - भक्ति, श्रद्धा, सत्त्व, तुष्टि, ज्ञान, अलोलुप्ता और क्षमा ये सात गुण दाता में अवश्य होने चाहिये। आचार्य अमितगति ने इन्हीं सात गुणों के भेद से दाता के भी सात भेद कहे हैं - भाक्तिक, तौष्टिक, श्राद्ध, विज्ञानी, अलोलुपी, सात्त्विक और क्षमाशील। पात्र - जिसको दान दिया जाता है वह है पात्र। जो ज्ञान एवं संयम में लीन हैं, जिनकी दृष्टि दूसरी ओर नहीं है, जो एकमात्र आत्मा की ओर दृष्टि देते हैं, जितेन्द्रिय हैं और धीर हैं, ऐसे लोक में जो सर्वश्रेष्ठ श्रमण हैं वे पात्र माने गये हैं। जो सुख-दु:ख, मान-अपमान और लाभ-अलाभ में सम, राग-द्वेष से रहित हैं वे पात्र कहे गये हैं। पात्र भा. सं. गा. 496 र. क. श्रा. टीका श्लोक 113 पु. सि. श्लोक 169 पउमचरिउ 14/39-40, अमि. श्रा. 10/29, महा. पु. 20/82, म. पु. 20/139 330 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org