________________ मूर्ति पूजा का फल जिनप्रतिमा की पूजा मन लगाकर एकाग्रचित्त पूर्वक अष्ट द्रव्य से विधि से ही करनी चाहिए। जिनेन्द्र भगवान् के चरण कमलों की जलधारा से पूजा करने पर समस्त पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, सुगन्धित चन्दन से पूजा करने पर स्वर्ग में उत्तम देव शरीर को प्राप्त करता है, अखण्डित अक्षतों से पूजा करने पर नव अक्षय निधियों से सम्पन्न चक्रवर्ती पद प्राप्त होता है। सुगन्धित पुष्पों से पूजा करने पर कल्पवृक्ष के वनों से सुशोभित स्वर्ग में इन्द्र होता है, शुद्ध विधि से निर्मित उत्तम नैवेद्य से पूजा करने पर उत्तम भोगों की प्राप्ति होती है, शुद्ध घी अथवा कपूर आदि से प्रज्वलित दीपक से पूजा करने पर सूर्य एवं चन्द्र के समान तेजस्वी शरीर की प्राप्ति होती है, शुद्ध धूप को अग्नि में खेकर जो पूजा करता है उसे तीनों लोकों में श्रेष्ठ पद प्राप्त होता है और अच्छे फलों से पूजा करने पर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसप्रकार पूजा के पश्चात् मूलमंत्र की 108 बार जाप देकर आवाहन किये गये देवों का विसर्जन कर पूजा समाप्त करना चाहिए। भावसहित जिनपूजा का फल / जो पुरुष पूर्व में बताये अनुसार विधिपूर्वक भक्ति भाव से, मन वचन काय से भगवान जिनेन्द्र देव की पूजा करता है। वह पुरुष तीनों लोकों में कष्ट एवं अशान्ति पहुंचाने के कारणभूत ज्ञानावरणादि पापकर्मो का क्षय करके, पूजन से, पुण्यकर्मों का संचय करता है या पुण्य बंध करता है। 360 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org