Book Title: Devsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 376
________________ जो ऐसा मानते हैं उन्हीं के शास्त्रों में लिखा है कि जो पुरुष मांस भक्षण करते हैं वे मरकर नीच कुल में उत्पन्न होते हैं। नीच कर्म करने वाले होते हैं, दरिद्री होते हैं और अल्पायु होते हैं। कहा है अल्पायुषो दरिद्राश्च नीचकर्मोपजीविनः। दुष्कुलेषु प्रसूयन्ते ये नरा: मांसभोजिनः॥ और भी कहते हैं कि यदि वेद में वर्णित अर्थ के अनुसार मोटा-ताजा बकरा मारकर खा जाने से यह तो स्वर्ग जाता ही है, वह बकरा भी स्वर्ग में जाता है। यदि ऐसा है तो उनको अपने पुत्र, स्त्री, भाई आदि को मारना चाहिये जिससे वे लोग बिना पुण्य धर्म किये ही स्वर्ग को प्राप्त हो जायेंगे।' वह पशु उन लोगों से कोई निवेदन तो नहीं करता कि वे उसको स्वर्ग में पहुँचा देवें बल्कि वह तो तृण-घास आदि खाकर ही सन्तुष्ट रहता है। अतः ऐसा जो कहता है कि मरने वाला और मारने वाला दोनों स्वर्ग जाते हैं, सर्वथा विपरीत कथन है। इस संसार में रहने वाले समस्त संसारी जीवों के नाभि में ब्रह्मा, कण्ठ में विष्णु, तालु में रुद्र, ललाट पर महेश, नासिका पर अन्य देवता निवास करते हैं, जो ऐसा मानते हैं तो जीवों के मारने में इन देवताओं का भी घात होता है। ये निश्चित है, यदि इन देवों को मारकर स्वर्गादिक की प्राप्ति करना चाहते हैं तो वे सभी हत्यारे पारधी हैं जो लोग वृक्षों की वंदना करके भी प्रसन्न रहते हैं। हिंसा करने पर कभी धर्म नहीं हो सकता, घर-व्यापार आदि के आरम्भ कार्य करते हुए कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते, स्त्रीसमागम करने पर कभी पवित्रता नहीं हो , सकती और मांसभक्षण करने पर कभी दया नहीं हो सकती। जो यह कहते हैं कि अन्न और मांस खाने में कोई अन्तर नहीं है तो उनके लिये कहा है कि अन्न अथवा धान्य और मांस ये दो अलग-अलग पदार्थ हैं, इसको आबालवृद्ध सभी जानते हैं, क्योंकि 'मांस . लाओ' तो कोई भी अन्न अथवा धान्य नहीं लाता है। इसका कारण यह है कि त्रस जीवों से मांस उत्पन्न होता है और स्थावर वृक्षों पर फल एवं अन्न/धान्य लगते हैं। भा. सं. गा. 44-45 370 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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