________________ वास्तव में सांख्यदर्शन के प्रणेता कपिल और योगशास्त्र के कर्ता पतञ्जलि हैं। दर्शनसार की चौथी गाथा से इसका समाधान इस रूप से हो जाता है कि मारीचि इन शास्त्रों का साक्षात् प्रणेता नहीं है। उसने अपना विचित्र मत चलाया था, उसी में उतार-चढ़ाव होता रहा और फिर वही सांख्य और योग के रूप में एकबार व्यक्त हो गया अर्थात् इनके सिद्धान्तों के बीज मरीचि के मत में विद्यमान थे। सांख्य और योगदर्शनों के प्रणेता लगभग 2500 वर्ष पहले हुए हैं, परन्त ऋषभदेव को हुए जैनशास्त्रों के अनुसार करोड़ों ही नहीं खरबों से भी अधिक वर्ष बीत चके हैं। उनके समय में इनको मानना ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं बन सकता। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रन्थों में भी मरीचि को सांख्य और योग का प्ररूपक माना गया है। 365 Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org