________________ (दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य), चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन 1-12 गुणस्थान तक होते हैं। क्षायोपशमिक सम्यक्त्व 4-7 गुणस्थान तक, संयमासंयम 5वें गुणस्थान में और क्षायोपशमिक चारित्र 6-7 वें गुणस्थान में होता है। अवधिदर्शन 4-12 गुणस्थान तक होता है। औदयिक भाव सामान्यरूप से 1-14 गुणस्थान तक होता है। उसमें से देवगति, नरकगति, असंयतभाव, कृष्ण, नील और कापोत लेश्या 1-4 गुणस्थान तक होती हैं। तिर्यञ्च गति में 1-5 गुणस्थान ही संभव हैं। मनुष्य गति और असिद्ध भाव 1-14 गुणस्थान तक होते हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, क्रोध, मान, माया कषाय 1-9 गुणस्थान तक होते हैं। लोभ कषाय 1-10वें गुणस्थान तक होती है। अज्ञानभाव 1-12 तक, पीत और पद्म लेश्या 1-7 तक, शुक्ल लेश्या 1-13 गुणस्थान तक होते हैं और मिथ्यादर्शन पहले गुणस्थान तक ही रहता है। पारिणामिक भाव सामान्यतः 1-14 और सिद्धावस्था तक संभव है। जीवत्व भाव 1-14 और सिद्धों तक होता है एवं भव्यत्व भाव 1-14 गुणस्थान तक होता है तथा अभव्यत्व भाव पहले गुणस्थान में ही होता है। 195 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org