________________ 1. अनशन तप - अनशन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - अन् + अशन। यहाँ अशन का अर्थ भोजन है 'अन्' निषेध सूचक है। कहने का तात्पर्य है भोजन का न करना अर्थात् स्वाद्य, खाद्य, लेह्य और पेय इन चार प्रकार के आहारों का त्याग करना अनशन तप कहलाता है। इसके दो भेद हैं-सार्वकालिक और असार्वकालिक।' जो जीवन पर्यन्त के लिये आहार का त्याग करना है उसको सार्वकालिक अनशन कहते हैं। यह अनशन समाधिमरण काल में होता है। जो एक, दो, चार, दस आदि दिनों की मर्यादा लेकर किया जाता है उसको >> असार्वकालिक अनशन कहते हैं। इसकी अधिकाधिक मर्यादा छह मास की है।' 2. अवमौदर्य (ऊनोदर) तप - भूख से कम खाना अवमौदर्य तप कहलाता है। पुरुष का भोजन बत्तीस ग्रास प्रमाण है। एक ग्रास का प्रमाण एक हजार चावल माना गया है। उक्त प्रमाणभूत आहार में से एक-एक ग्रास कम करते हुए एक ग्रास प्रमाण तक घटाते जाना उत्कृष्ट अवमौदर्य तप है। स्वाभाविक आहार में से एक ग्रास भी कम लेना अवमौदर्य तप है। इस तप के करने से साधु के निद्राविजय आसानी से कर जाते हैं, जिससे स्वाध्याय आदि में प्रमाद नहीं आता। 3. वृत्तिपरिसंख्यान तप - आहार लेने को जाते समय साधु संघ अनेक प्रकार के नियम लेते हैं कि अमुक विधि, अमुक व्यक्ति अथवा अमुक वस्तु के द्वारा कोई पड़गाहन करेगा तो ही आहार ग्रहण करूँगा। इस तरह किसी भी प्रकार के " नियम का संकल्प करके आहार के लिये जाना, आहार ग्रहण करना और इस प्रकार के संकल्पों के पूर्ण न होने पर समताभाव पूर्वक लौटना वृत्तिपरिसंख्यान तप है। रसपरित्याग तप - इन्द्रियों को वश में करने के लिये घी, तेल, नमक, दुध, दही और मीठा (चीनी, गुड़ आदि) इन छहों रसों में से शक्त्यनुसार एक, दो अथवा तीन आदि रसों का त्याग करना रस परित्याग तप कहलाता है। इससे सन्तोषी वृत्ति बढ़ती है जो वैराग्य-वृद्धि में सहायक है। मरणकण्डिका 212-214 भगवती आराधना गा. 212 216 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org