________________ ततीय परिच्छेद : ध्यान एवं गुणस्थान सामान्य रूप से देखा जाए तो ध्यान 1-14 गुणस्थान तक होते हैं। विशेष रूप से चारों ध्यानों के चारों भेदों को आचार्यों ने इसप्रकार से गुणस्थानों में विवेचित किया है- आत ध्यान के चारों भेदों को 1-6 गुणस्थान तक कहा गया है। उनमें से इष्टवियोगज आर्तध्यान, अनिष्टसंयोगज और पीडा चिन्तन 1-6 गुणस्थान तक होते हैं और निदान बंधा 1-5 गुणस्थान तक होता हैं। चारों रौद्रध्यान 1-5 गुणस्थान तक होते हैं। धर्म्यध्यान 4-7 गुणस्थान तक होते हैं। उनमें से आज्ञा विचय और अपाय विचय 4-7 गुणस्थान तक एवं विपाक विचय 5-7 गुणस्थान तक तथा से संस्थान विचय धर्म्यध्यान 6-7 गुणस्थान में संभव है। इसीप्रकार शुक्लध्यान 8-14 गुणस्थान तक होता है। उनमें से पृथक्त्व वितर्क वीचार 8-11 गुणस्थान तक, एकत्व वितर्क अवीचार 12 वें गुणस्थान में, सक्ष्मकिया अप्रतिपाती 13 वें गुणस्थान के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में और व्युपरत किया अनिवर्ती शुक्लध्यान 14 वें गणस्थान में होता है। 196 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org