________________ 60, चतुर्थ समय में 72, पंचम समय में 84, छठवें समय में 96, सप्तम समय में 108 और अष्टम समय में 108 / इस प्रकार 608 जीव इस गुणस्थान में प्रवेश करते हैं। * मोक्षप्राप्ति के लिये दो आसन बताये गये हैं, एक पद्मासन, एक खड़गासन। * जिनकी अवगाहना 7 हाथ से कम होती है वे जीव खड़गासन से मोक्ष जाते हैं। इससे अधिक अवगाहना वाले जीव दोनों आसनों से मोक्ष जाते हैं। * इस गुणस्थान में अघातिया कर्मों का तीव्र उदय होता है और अन्त्य समय में मन्द उदय होता है। इसलिये परम यथाख्यात चारित्र इस गुणस्थान के अन्त में होता है और जीव समस्त कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ... किस गुणस्थान में कितनी कर्म प्रकृतियों का क्षय होता है इसके लिए एक तालिका निम्न है कर्म प्रकृतियों का क्षय गुणस्थान 4-7 गुणस्थानातीत सिद्ध जिस जीव ने अपना शुद्ध स्वरूप प्राप्त कर लिया है और जो संसार और गुणस्थानों आदि की संज्ञा से अतीत हो गये हैं वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं। उनके नाम से ही ज्ञात होता है कि जिसने अपने आपकी सिद्धि कर ली है वह सिद्ध है। सिद्ध का स्वरूप कैसा होता है? तो इस पर प्रकाश डालते हुए आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी लिखते हैं कि - आठ कर्मों के बन्धन को जिन्होंने नष्ट कर दिया है ऐसे आठ महागुणों सहित, परम, लोकाग्र में स्थित और नित्य ऐसे वे सिद्ध होते हैं।' नि. सा. 72, क्रि. क. 3/1/2/142 189 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org