________________ यहाँ कोई प्रश्न करता है कि जिन केवलियों के केवलि समुद्घात नहीं होता है उनके अघातिया कर्मों की स्थिति आयु कर्म के बराबर कैसे होती है? तो इसका उत्तर देते हुए आचार्य कहते हैं कि स्थितिकाण्डक घात के द्वारा उक्त स्थिति का घात बन जाता है।' इस प्रकार इस गुणस्थान में यह केवलीसमुद्घात की एक विशेष प्रक्रिया भी होती है। परन्तु इस गुणस्थान में कोई भी कर्म प्रकृति नाश को प्राप्त नहीं होती है। सयोम केवली गुणस्थान की विशेषतायें * घातियों कर्मों की 47, नामकर्म की 13 एवं आयु कर्म की 3, इस प्रकार 63 प्रकृतियों के क्षय होने से केवलज्ञान प्राप्त हो गया है तथा योग से सहित है ऐसे जीव सयोग केवली कहलाते हैं। * इस गुणस्थान में सयोग पद अन्त दीपक और केवली पद आदि दीपक है। सयोग केवली जीव अनन्त चतुष्टय एवं नव केवल लब्धियां से युक्त होते हैं। घातिया - कर्मरूपी शत्रुओं का नाश करने वाले होने से इन्हें अरिहन्त कहते हैं। * जरा, व्याधि, जन्म, मरण आदि से रहित होने से ये अरिहन्त कहलाते हैं। * केवलज्ञान को असहाय ज्ञान भी कहते हैं अर्थात् जिस ज्ञान में इन्द्रिय, मन और __ आलोक आदि की सहायता नहीं होती है। * केवलज्ञान होते ही सामान्य केवली चित्रा पृथ्वी से 500 धनुष ऊपर एवं तीर्थङ्कर केवली 5000 धनुष ऊपर चले जाते हैं। * समवसरण में जब किन्हीं मुनिराज को केवलज्ञान की प्राप्ति होती है तो वे जहाँ विराजमान हैं वहाँ से चार अंगुल ऊपर उठ जाते हैं। * तीर्थङ्करों की तीन बार अथवा चार बार दिव्यध्वनि खिरने का नियम है। सामान्य केवली की देशना कभी भी खिर सकती है। ध. 13/31 183 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org